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६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
सकता और आज का जैन विद्वान् यदि मानसशास्त्र का गहरा अध्ययन नहीं करता है तो वह कर्मशास्त्र को पूरा समझ नहीं पाता।।
मैं जब-जब मनोविज्ञान को पढ़ता हूं तो मुझे लगता है कि आज का मनोवैज्ञानिक कर्मशास्त्र की भाषा में बोल रहा है, सोच रहा है। मनोविज्ञान ने चौदह मूल प्रवृत्तियां और चौदह प्रकार के संवेग प्रतिपादित किए हैं। एक
ओर इनको रखें और दूसरी ओर मोहनीय कर्म की प्रकृतियों को रखें तो आश्चर्य होगा कि दोनों में भावना की ही तुलना नहीं है, शब्दों की भी तुलना है। वह चार्ट इस प्रकार हैमूल प्रवृत्तियां
मूल संवेग १. पलायनवृत्ति
भय २. संघर्षवृत्ति
क्रोध ३. जिज्ञासावृत्ति
कुतूहलभाव ४. आहारान्वेषणवृत्ति
भूख ५. पित्रीयवृत्ति
वात्सल्य, सुकुमार भावना ६. यूथवृत्ति
एकाकीपन तथा सामूहिकता भाव ७. विकर्षवृत्ति
जुगुप्साभाव ८. कामवृत्ति
कामुकता ६. स्वाग्रहवृत्ति
स्वाग्रह भाव, उत्कर्ष भाव १०. आत्मलघुतावृत्ति
हीन भाव ११. उपार्जनवृत्ति
स्वामित्व भाव, अधिकार भाव १२. रचनावृत्ति
सृजन भाव १३. याचनावृत्ति
दुःख भाव १४. हास्यवृत्ति
उल्लसित भाव मोहनीय कर्म के विपाक मूल संवेग १. भय
भय २. क्रोध
क्रोध ३. जुगुप्सा
जुगुप्सा भाव ४. स्त्रीवेद
कामुकता ५. पुरुषवेद
कामुकता ६. नपुंसकवेद
कामुकता ७. अभिमान
स्वाग्रहभाव, उत्कर्षभाव ८. लोभ
स्वामित्वभाव, अधिकारभाव ६. रति
उल्लसित भाव १०. अरति
दुःख भाव
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