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________________ समाधि : मानसिक समस्या का स्थायी समाधान ६३ गए। उन्होंने देखा। रोना अजीब-सा लगा। उन्होंने रोने का कारण पूछा । बालक प्रबुद्ध था। उसने कहा-रोने के तीन लाभ हैं-(१) चाक्षुष यंत्र के आसपास जो मैल या कफ जमा होता है, वह रोने से साफ हो जाता है। (२) आंखें साफ हो जाती हैं, देखने की शक्ति बढ़ जाती है। (३) भोजन भी ठंडा और सुपाच्य हो जाता है। __आज का मनोविज्ञान कह सकता है कि रोने का चौथा लाभ है-रोने वाले के हार्ट-ट्रबल नहीं होता। ___तनाव को कम करने का एक उपाय है-रेचन। रोना प्रकृति का रेचन है, प्रकृति की व्यवस्था है। रेचन होता है और दबाव कम हो जाता है। दबाव भीतरी स्नायुओं में संचित नहीं होता, बाहर निकल जाता है। कठिनाई तब होती है जब तनाव स्नायु-संस्थान में संचित हो जाता है। इतना संचय बढ़ जाता है कि वह स्नायु-संस्थान को ही तोड़ने लग जाता है। तब उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क पर दबाव, हार्ट-ट्रबल आदि बीमारियां पैदा होती हैं। निर्जरा : रेचन की प्रक्रिया धर्म के क्षेत्र में यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्या धर्म के पास कोई रेचन का उपाय है? धर्म दमन सिखाता है। वह कहता है-गुस्से को दबाओ, कामवासना का दमन करो, भय और अहं को दबाओ। धर्म केवल दबाने की ही बात करता है। यह सही नहीं है। धर्म ने कभी दमन नहीं सिखाया। उसके पास निर्जरा का सिद्धान्त है। निर्जरा का अर्थ है-रेचन। जो भीतर संचित है उसको बाहर निकालना है, यह है निर्जरा। इतना निकालना, इतना रेचन करना कि भीतर में जो संचित है, वही समाप्त न हो जाए, किन्तु संचित करने का तंत्र भी समाप्त हो जाए। __ जब किसी पंछी की पांखें रजों से भर जाती हैं तब वह अपनी पांखों को प्रकंपित कर सारे रजकणों को झाड़ देता है। इसी प्रकार इतना प्रकंपन करो कि सारा दबाव समाप्त हो जाए, बाहर निकल जाए, रेचन हो जाए। यह निर्जरा की प्रक्रिया केवल क्रोध या भय के तनाव को समाप्त करने की ही प्रक्रिया नहीं है, किन्तु क्रोध और भय के मूल तंत्र को मिटाने की प्रक्रिया है। प्रवृत्तियां और संवेग ___ मनोविज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान् मेक्डोनल ने चौदह प्रवृत्तियां और चौदह प्रकार के संवेग बतलाए हैं। इनकी तुलना मोह कर्म की प्रकृतियों से की जा सकती है। जैन परंपरा में कर्मशास्त्र पर बहुत अध्ययन हुआ है। जब मैं वर्तमान मनोविज्ञान और जैन दर्शन को तुलनात्मक दृष्टि से पढ़ता हूं तो लगता है, दोनों में बहुत साम्य है। यह तथ्य है कि यदि आज का मनोवैज्ञानिक कर्मशास्त्र का अध्ययन नहीं करता है तो वह मानसिक समस्याओं का पूरा समाधान नहीं दे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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