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भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण
चारु इन्द्राय नाम-ऋग्वेद ९.१०९.१४ विश्वा हि वो नमस्यानि वन्द्यानामा-तत्रैव १०.६३.२ मनामहे चारुदेवस्य नाम-तत्रैव १.२४.१ मा अमर्त्यस्य ते भूरि नाम मनामहे--तत्रैव ८-११.५ भूरि नाम वन्दमानो दधाति-तत्रैव ५.३.१० नामानि ते शतक्रतो विश्वामिर्गीभिरीमहे ---तत्रैव ३.३७.३
वैदिक वाङमय में सामूहिक स्तुतिगायन का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद १.८९.८, सामवेद उत्तरार्द्ध २१.२६, शुक्लयजुर्वेद २५.२१
और तैत्तिरीय आरण्यक १.१.१ में सामूहिक स्तुति का गायन किया गया है----
___ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ गैस्तुष्टुवांसस्तनुभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
अथर्ववेद १९.६७.१८, शुक्लयजुर्वेद ३६.३४, ते. आ• ४.४२.५ में ऋषि सौ वर्षों तक विभूति सहित जीवित रहने के लिए और अन्यत्र मंगल के लिए प्रार्थना कर रहा है
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्यर्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः।
भागवत की स्तुतियों का मूल स्रोत पुरुष, हिरण्यगर्भ और नासदीय आदि सूक्तों के अतिरिक्त अन्य सूक्तों में भी प्राप्त होता है। सकाम में अर्जुन, उत्तरा, गजेन्द्र, नृपगण आदि की स्तुतियां हैं जिनमें जीवन रक्षा के लिए उपास्य से आर्त प्रार्थना की गई है। ऋग्वेद के वरुण सूक्त इन स्तुतियों का मूल आधार है। वहां ब्राह्मण पुत्र शुनःशेप अपनी प्राण रक्षा की याचना नैतिक देवता वरुण से करता है। उसे देवता वरुण अभय भी प्रदान करते हैं।
__ भागवत के स्तुतियों में श्रीकृष्ण के अनेक गुणों से जैसे सर्वव्यापक, आद्यरूप, शरणागतवत्सल, सर्वश्रेष्ठशासक, शक्तिशाली, असुरों के निहन्ता, संसार के आश्रय आदि से गुणों से विभूषित कहा गया है। ऋग्वैदिक इन्द्र, विष्णु आदि की स्तुतियों में ये सारे विशेषण उपलब्ध होते हैं।
भागवतीय भक्तों ने अनेक बार अपने उपास्य को प्रकाशस्वरूप, प्रकाश प्रदाता, ज्ञानस्वरूप आदि कहा है। एक स्थल पर अदिति अपनी स्तुति में उपास्य के अज्ञानापास्तक स्वरूप को उद्घाटित कर रही है--हे प्रभो ! आप सदा अपने स्वरूप में स्थित रहते हैं। नित्यनिरन्तर बढ़ते हुए पूर्ण बोध के द्वारा आप हृदय के अन्धकार को नष्ट करते रहते १. ऋग्वेद १.९०.९, अथर्ववेद १९.९.६
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