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३. भागवत की स्तुतियां : स्त्रोत, वर्गीकरण
एवं वस्तु विश्लेषण
उपक्रम
श्रीमद्भागवत भक्ति का शास्त्र है। इसमें भक्ति का साङ्गोपाङ्ग विवेचन किया गया है। अनेक भक्तों की कथा एवं आख्यानोपाख्यान के द्वारा भक्ति तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। भक्ति रूप साध्य के अनेकविध साधनों में स्तुति को सर्वोत्कृष्ट माना गया है। भगवत्कथा-गुणकीर्तन एवं विविध लीलागायन से अचला भक्ति पूर्ण होती है। यहां अनेक प्रकार के भक्त अपने भगवान् के श्रीचरणों में अपनी भावना के अनुसार स्तुति समर्पित करते हुये दृष्टिगोचर होते हैं।
___श्रीमद्भागवत महापुराण में छोटी बड़ी कुल १३२ स्तुतियां विभिन्न अवसरों पर विविध स्तोताओं के द्वारा गायी गई हैं। इनमें से कुछ निष्काम हैं और कुछ सकाम । सकाम स्तुतियों में भक्त का कोई स्वार्थ निहित रहता है। वह सांसारिक भोग, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए, तथा दुःख, रोग एवं विपत्ति से बचने के लिये अपने उपास्य की स्तुति करता है । निष्काम स्तुतियों का लक्ष्य है ---प्रभु प्रेम या प्रभु चरण रति । वह प्रभु चरणरज की प्राप्ति के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की कामना नहीं करता है । स्तुतियां सहज-स्वाभाविक रूप में भागवतीय भक्तों के हृदय से स्वत: स्फूर्त होती दिखाई देती हैं। यहां ज्ञानादि गौण हैं। ईश्वरानुरक्ति और प्रभु प्रेम की ही प्रमुखता है।
भागवतीय स्तुतियों एवं वैदिक स्तुतियों में स्तोता के आधार पर विभिन्नता पायी जाती है। वेद में ज्ञान प्रभासम्पन्न ऋषिगण ही-जो सर्वद्रष्टा थे-- स्तुति गान में प्रवृत्त होते दिखाई पड़ते हैं । अपनी ज्ञानगंगा में स्थित होकर स्वयं में समाधिस्थ हो प्रभु का दर्शन कर उनकी स्तुति गान करते थे। लेकिन श्रीमद्भागवत में समाज के सभी वर्ग के लोग--- ज्ञानी, अज्ञानी, पुण्यात्मा, पापी सबके सब प्रभु नाम का उच्चारण कर भवसागर तर जाते हैं । एक तरफ शुकदेव, पितामह भीष्म, अम्बरीष और राजा पृथु जैसे सर्वज्ञ, ज्ञानी भक्त हैं तो दूसरी तरफ अजामिल जैसे घोर पापी, गजेन्द्र जैसे मूढ़ पशु, सुदामा माली जैसे शूद्र, वृत्रासुर जैसे महापातकी घोर
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