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संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा
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स्तोत्र को सजाया है । इसमें शंकर के विभिन्न रूपों का कल्पनात्मक एवं भावनात्मक चित्रण के साथ सगुण और निर्गुण रूप का भी प्रतिपादन हुआ है । सूर्यशतक - बाण पत्नी से शापित मयूर कवि ने अमंगल की शांति के लिये सौ स्रग्धरा छन्द में अलंकृत एवं प्रौढ़ स्तुति काव्य " सूर्यशतक" की रचना की । बाण और मयूर दोनों राजा हर्षवर्द्धन के दरबार में सभा पण्डित थे । इस स्तुतिकाव्य में भाव की अपेक्षा शब्द - चमत्कार की अत्यधिक प्रधानता है । सूर्यशतक के पद्य काव्य प्रकाश, ध्वन्यालोक आदि लक्षण ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । इस स्तोत्र पर बल्लभदेव, मधुसूदन एवं त्रिभुवन पाल की संस्कृत टीकाएं भी उपलब्ध है । इसमें भगवान् सूर्य का प्रकाशमय स्वरूप का अंकन किया गया है ।
चण्डीशतक --- यह स्तोत्रकाव्य सुप्रसिद्ध महाकवि बाणभट्टद्वारा स्रग्धरा वृत्तों में निबद्ध भगवती चण्डी के प्रति समर्पित है। इसमें भगवती दुर्गा के विभिन्न रूपों का चित्रण उपलब्ध होता है ।
अद्वैतवाद के प्रतिष्ठापक शंकराचार्य विरचित स्तुति काव्य
आचार्य शंकर अद्वैतवाद के प्रतिष्ठापक आचार्य हैं । ये शिव के अवतार माने जाते हैं । इनका जन्म भारत के केरल प्रांत में सातवीं शताब्दी में हुआ था । बाल्यावस्था में ही इन्होंने संन्यास ग्रहण कर सम्पूर्ण भारत में भ्रमण कर अद्वैतवाद की प्रतिष्ठा की । इनकी शेमुषी प्रतिभा, अगाध पांडित्य, अलौकिक वक्तृता शक्ति एवं दिव्य ज्ञान के समक्ष सारा विश्व नतमस्तक हो गया । अतएव ये जगद्गुरु कहलाये ।
संस्कृत साहित्य में शंकराचार्य विरचित अनेक स्तोत्र - काव्य उपलब्ध होते हैं । उनमें आनन्द लहरी, मोहमुद्गर, आत्मबोध, कनकधारा स्तोत्र, अपराध भंजन, यतिपंचक आदि प्रसिद्ध हैं । इन स्तुतियों में उत्कृष्ट काव्य के सभी गुण पाये जाते हैं । ये रसात्मकता, सरलता, सरसता, सहजता, प्रासादिकता, संगीतात्मकता और अर्थगांभीर्य से परिपूर्ण हैं ।
आनन्दलहरी या सौन्दर्यलहरी में भगवती उमा की स्तुति की गई है । इसमें १०३ पद्य हैं । भगवती उमा को जगज्जनी के रूप में निरूपित किया गया है । भगवती उमा के प्रति निवेदित यह महनीय पद्य अवलोकनीय
है ।
धनुः पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पंच विशिखा । वसन्तः सामन्तो मलयमरुदायोधनरथः । तथाप्येकः सर्व हिमगिरिसुते कामपि कृपां अपांगाते लब्ध्वा, जगदिदमनंगो विजयते ॥
१. सौन्दर्यलहरी - ७
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