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________________ ६० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन के नैसर्गिक उद्गार हैं । पुराण, दर्शन, काव्य-धर्म आदि की दृष्टि से ये स्तुतियां महत्त्वपूर्ण हैं । अन्य स्तुति साहित्य वैदिक, पौराणिक एवं महाकाव्यों में ग्रथित स्तुतियों के अतिरिक्त अन्य स्वतन्त्र स्तोत्र ग्रन्थों की भी रचना हुई है । भौतिक कामना सिद्धि के लिये, दारिद्रय निवारण, भय से मुक्ति, पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि एवं आयुष्य की कामना से अनेक भक्त कवियों ने स्तोत्रात्मक ग्रन्थों की रचना कर अपने उपास्य को समर्पित किया है । भौतिक उत्थान के अतिरिक्त अध्यात्म विषयक स्तोत्र - ग्रन्थ भी पाए जाते हैं जिसमें आध्यात्मिक उन्नति, भवबन्धन से मुक्ति, प्रभु शरण की प्राप्ति आदि बातें दृष्टिगोचर होती हैं। भक्तों ने इन स्तोत्रों में अपने हृदय की दीनता, हीनता, विनम्रता, समर्पण की भावना तथा भगवान् की उदारता, भक्तवत्सलता, सर्वसमर्थता आदि का परिचय दिया है वह सचमुच अपने आप में बेजोड़ है । सुप्रसिद्ध आधुनिक आलोचक पण्डित बलदेव उपाध्याय ने लिखा है- हमारा भक्त कवि कभी भगवान् की दिव्यविभूतियों के दर्शन से चकित हो उठता है तो कभी भगवान् के विशाल हृदय, असीम अनुकम्पा और दीन जनों पर अकारण स्नेह की गाथा गाता हुआ आत्म-विस्मृत हो उठता है । जब अपने पूर्व कर्मों की ओर दृष्टि डालता है तो उसकी क्षुद्रता उसे बेचैन बना डालती है । बच्चा जिस प्रकार अपनी माता के पास मनचाही वस्तु न मिलने पर कभी रोता है, कभी हंसता है और कभी आत्मविश्वास की मस्ती में नाच उठता है । ठीक यही दशा हमारे भक्त कवियों की है । वे अपने इष्ट देवता के सामने अपने हृदय को खोलने में किसी प्रकार की आना-कानी नहीं करते । वे अपने हृदय की दीनता तथा दयनीयता कोमल शब्दों में प्रकट कर सच्ची भावुकता का परिचय देते हैं । इन्हीं गुणों के कारण इन भक्तों के द्वारा विरचित स्तोत्रों में बड़ी मोहकता है, चित्त को पिघला देने की अतुल शक्ति है । ' इस प्रकार स्तुतियों में सरसता, सरलता, समर्पण की भावना तथा भगवान् को हिला देने की शक्ति है । स्वतंत्र स्तोत्र - साहित्य का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है--- शिवमहिम्न स्तोत्र-पुष्पदन्त द्वारा शिखरिणी छन्द में विरचित शिवमहिम्नस्तोत्र भगवान् भूतभावन त्रिलोकीनाथ शिव के चरणों में समर्पित एक उत्कृष्ट स्तुति काव्य है । इसमें शिव की सर्व व्यापकता एवं सर्वसमर्थता का निरूपण है । ईश्वर की सत्ता एवं सर्व व्यापकत्व का दार्शनिक विवेचन अश्लाघनीय है । अनेक टीकाकारों ने अपनी वैखरी से इस महनीय १. संस्कृत साहित्य का इतिहास - बलदेव उपाध्याय, पृ० ३४७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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