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संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा
स्थिति को धारण करते हुए पालन कर्ता विष्णु एवं तमोगुण विशिष्ट संसार के प्रलयकर्ता रूद्र के रूप में आपही प्रसिद्ध हैं। हे प्रभो आपको भक्तजन सर्वज्ञ, सर्वसमर्थ, सर्वनियन्ता, क्लेशों एवं कर्मों के भोग से रहित पुरुषविशेष ईश्वर के रूप में जानते हैं। भक्तजन आप भक्तवत्सल की स्तुति-भक्ति करके सद्य: सांसारिक क्लेशों से मुक्त हो जाते हैं। सामादि वेदज्ञान के ज्ञाता ब्रह्मा रूपी भ्रमर जिसके भीतर में है ऐसा जिनके नाभिरूप जलाशय में उत्पन्न कमल लक्ष्मीजी के मुख रूप चन्द्रमा के समीप में भी शोभता है।' नैषध महाकाव्य को स्तुतियां
नैषध महाकाव्य महाकवि हर्ष की अनुपम कृति है। महाकवि हर्ष विचित्र मार्ग के कवि हैं। इनकी अद्भुत काव्य प्रतिभा, वर्णन-कला तथा निरूपण की शक्ति का चूड़ांत निदर्शन है "नैषधं विद्वदौषधम्" यह सूक्ति जो सम्पूर्ण विदग्ध-संसार में प्रथित है ।
__ रस, अलंकार एवं काव्य-गुणों के साथ इस महाकाव्य में कतिपय गीतियां भी अपनी रसमाधुरी के लिए सहृदय जनों का हृदयरंजन करती हैं। भगवान् के विभिन्न अवतार विषयक स्तुतियां, भक्तहृदय की सरल अभिव्यक्ति है। अन्य प्रसंगों की तरह शब्दों का चमत्कार, अर्थगौरव का गांभीर्य, उपमादि अलंकारों का मनोज्ञ चित्रण आदि हर्ष द्वारा निबद्ध स्तुतियों के वैशिष्ट्य हैं। २४ वें सर्ग में विभिन्न अवतारों की स्तुतियां गायी गई हैं। मत्स्यावतार की स्तुति करते हुए नल कहता हैशंखासुर के कपट से मत्स्य का शरीर धारण किए हुए तुम्हारी पूंछ के आस्फालन से ऊपर उछला हुआ जल नील नभ के संसर्ग से नीलिमा को प्राप्त कर मानो आकाश गंगा के रूप में प्रकट हुआ है।
कच्छपावतार की स्तुति करते हुये कहा गया है कि तुम्हारी पीठ पर अनेक सृष्टियों के धारण किये गए पृथिवी-मण्डलों के घट्टे के समान चचिह्नों से स्पृष्ट पृथिवी की रक्षा करने में तत्पर आपका कच्छप शरीर संसार की रक्षा करे।
इस महाकाव्य में वाराहावतार, मत्स्यावतार के अतिरिक्त नसिंहावतार वामनावतार एवं अन्य भगवदवतारों की स्तुतियां संग्रथित हैं।
रत्नाकर कवि ने "हरिविजयम्" नामक महाकाव्य के ४७ वें सर्ग में देवताओं द्वारा १६७ पद्यों में चण्डी की स्तुति करायी है।
___ इस प्रकार संस्कृत के अलंकृत महाकाव्यों की स्तुतियां भक्ति युक्त हृदय १. शिशुपालवध महाकाव्य १४१६०-६९ २. नैषधमहाकाव्यम् २१-५३ ३. तत्रैव २१-५४
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