________________
५८
श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन महिमा अचिन्त्य अनन्त और अगम्य है । आपका चित्त राग से मुक्त है क्योंकि आप परम योगी हैं, पर विलासिता भी आपमें कम नहीं है क्योंकि आपने अपने अर्धाङ्ग में स्त्री को धारण कर रखा है। आप जगद्वन्ध होकर भी प्रभातकाल में ब्रह्मदेव की वन्दना करते हैं इसलिए आपके याथार्थ्य स्वरूप को जानना कठिन है।
इस प्रकार शंकर के विभिन्न गुणों, रूपाकृति एवं कार्यों का विवेचन इस स्तुति में किया गया है । भगवान् शंकर समस्त लोकों के रक्षक, पालक तथा संहारक हैं। वे मंगल के देवता हैं। कलिकाल में प्रमुख रूप से उनकी आराधना सभी कामनाओं को देने वाली है। इस स्तुति में अर्जुन ने भगवान् शिव की अष्टमूर्तियों-वायमूर्ति, अग्निमूर्ति, जलमूर्ति, व्योममूर्ति आदि की आराधना कर अन्त में शस्त्र विद्या की प्राप्ति की कामना की है । अविद्या, माया, जीव, ब्रह्म आदि दार्शनिक विषयों का भी निरूपण इस स्तुति में पाया जाता है । अर्थगौरव की दृष्टि से यह स्तुति अत्यन्त प्रमुख है। माघकाव्य की स्तुति सम्पदा
महाकवि माघ संस्कृत साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। सुरभारती के वरदवत्स हैं। महाकवि माघ न केवल काव्यशास्त्रीय तत्त्वों के पारदश्वा है, अपितु व्याकरणशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, संगीत, पाकविद्या, हस्तिविद्या, अश्वशास्त्र एवं पुराणादि के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। सभी शास्त्रों का सार तत्त्व इनके शिशुपालवध नामक महाकाव्य में समाहित है। श्रीमद्भागवतीय कथा 'शिशुपाल का कृष्ण के द्वारा पराक्रम पूर्वक वध' पर आधारित यह एक प्रौढ़ महाकाव्य है । "माघे सन्ति त्रयोगुणा" का यह आभाणक विद्वत् मण्डली में आदृत है।
वस्तुतः महाकवि माघ काव्यकला में निष्णात पण्डित हैं, जिन्होंने केवल विदग्ध एवं विचक्षण विद्वानों के मनोविनोद के लिये इस प्रौढ़ महाकाव्य की रचना की । अर्थालंकारों के साथ-साथ कतिपय लघुकाय गीतियों का प्रयोग भी इस महाकाव्य की प्रमुख विशेषता है। चतुर्दश सर्ग में पितामह भीष्म ने सर्व नियन्ता अर्जुन सखा भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति उदात्त स्तुति समर्पित की है
योगीजन आपको ध्यान के योग्य होने पर भी बुद्धिमार्ग का अविषय मानते हैं । स्तुत्य होने पर भी शब्दों के द्वारा आपका चित्रण नहीं किया जा सकता। आप उपासना के योग्य होने पर भी अत्यन्त दूरवर्ती एवं अचिन्त्य रूप वाले हैं । आपमें तीनों गुणों की स्थिति-- रजोगुण का आश्रय कर संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा, तत्त्व गुण का आश्रयण कर संसार की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org