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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन उनसे निवेदित करने लगे--विश्व को बनाने, पालन करने और अंत में संहार करने वाले तीनों रूप आप अपने में धारण करते हैं। जैसे एक स्वाद वाला वर्षा का जल अलग-अलग देशों में वरसकर अलग-अलग स्वाद वाला हो जाता है उसी प्रकार आप सभी विकारों से दूर होते हुए भी सत्त्व, रज और तम-तीनों गुणों को लेकर बहुत से रूप धारण करते हैं । आप अत्यन्त विशाल हैं, आपने ही दृश्यमान सम्पूर्ण संसार को उत्पन्न किया है ... अमेयो मितलोकस्त्वमनर्थी प्रार्थनावहः । अजितो जिष्णुरत्यन्तमव्यक्तो व्यक्ताकारः।' हृदयस्थ होते हुए भी आप दूर हैं, आप इच्छारहित भी तप करते हैं, आप दयावन्त हैं, लोग पुराण कहते हैं पर आप कभी बूढ़े नहीं होते हैं । आप सर्वज्ञ हैं, सबके कारण हैं सर्वज्ञस्त्वमविज्ञातः सर्वयोनिस्त्वमात्मभूः। सर्वप्रभुरनीशस्त्वमेकस्त्वं सर्वरूपभाक् ॥' इस प्रकार दसवें सर्ग में श्लोक सं० १६ से लेकर ३७ तक भगवान् विष्णु के विभिन्न गुणों का प्रतिपादन हुआ है। सर्वज्ञता, सर्वकारणता, पुराणत्व, सबके स्वामी, रक्षक, सर्वव्यापकता आदि गुणों का आधान विष्णु में किया गया है। प्रस्तुत स्तुति में काव्य गुणों का उचित समावेश हुआ है । शैली प्रसाद गुण से परिपूर्ण है । अलंकारों का उचित सन्निवेश से स्तुति की कमनीयता में वृद्धि हो गयी है। भाषा की प्रांजलता, शब्दों का उचित प्रयोग अवलोकनीय है । उपमाओं की अद्भुत छटा भी रम्य है। इस स्तुति पर ऋग्वेदीय पुरुषसूक्त का ज्यादा प्रभाव परिलक्षित होता है । सम्पूर्ण संसार विष्णु से ही उत्पन्न होता है और फिर उसी में विलीन हो जाता है । कुमारसंभव में ब्रह्मा की स्तुति अत्यन्त कमनीय है। यह आर्त्त स्तुति है । तारकासुर के उपद्रव से त्रस्त देवगण पितामह ब्रह्मा के शरण में जाकर उनकी स्तुति करते हैं। हे भगवन् ! संसार के स्रष्टा ! पहले एक ही रूप में रहने वाले और संसार रचते समय सत्त्व, रज और तीन गुण उत्पन्न करके ब्रह्मा, विष्णु, महेश नाम से तीन रूपों को धारण करने वाले आपको नमस्कार है । हे प्रभो आप संसार के उत्पत्तिकर्ता हैं । आप ही विष्णु और हिरण्यगर्भ इन तीन रूपों में अपनी शक्ति प्रकट करके संसार का नाश, पालन १. रघुवंश महाकाव्य १०।१९-३७ २. तत्रैव १०१८ ३. तत्रैव १०।२० ४. कुमारसंभवम् २।३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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