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________________ ५४ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन इस प्रकार विभिन्न विशेषणों एवं अद्भुत कर्मों के वर्णन के द्वारा विष्णु के सर्वव्यापक, सर्वसमर्थ एवं लोकातीत स्वरूप का उद्घाटन किया गया है तथा दैत्यत्रास से रक्षा की याचना की गई है। द्वितीय स्तुति है-देवकृतविष्णु स्तुति ।' बालक ध्रुव लौकिक पिता से तिरस्कृत होकर भगवान् विष्णु की शरणागति ग्रहण करता है। उसके अखण्ड तप से अग्नि, मरुत, वरुणादि देवलोग डर गए हैं कि शायद ध्रुव उनका स्थान न छीन ले । यह आर्त स्तुति है। इन्द्रादि देवता ध्रुव तप से भयभीत होकर ध्रुव को तप से उपरत करने के लिए भगवान् विष्णु से स्तुति करते हैं-हे देवाधिदेव जगन्नाथ ! परमेश्वर ! पुरुषोत्तम ! हम सब ध्रुव की तपस्या से सन्तप्त होकर आपकी शरण में आए हैं। हे ईश ! आप हम पर प्रसन्न होइए और इस उत्तानपाद के पुत्र को तप से निवृत्त करके हमारे हृदय का कांटा निकालिए।' __ तृतीय स्तुति है---'ध्रुवकृत विष्णु स्तुति'। यह स्तुति तपस्या की पूर्णता पर की गई है । जब जन्मजन्मान्तर के आराध्य स्वयं भगवान् विष्णु बालक ध्रुव के तप से प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं । अपने आराध्य को प्रत्यक्ष देखकर वह भावविह्वल हो जाता है । भयभीत और रोमांचित स्थिति में वह प्रभु की स्तुति करने में समर्थ बुद्धि के लिए प्रभु से ही याचना करता है। इस स्तुति में किसी प्रकार की लौकिक कामना नहीं है। ध्रुव का एक मात्र लक्ष्य प्रभु प्राप्ति ही है। इसमें भगवान् के विविध पराक्रमयुक्त कार्यों का वर्णन किया गया है। ध्रुव कहता है--जो सर्वव्यापक, सूक्ष्म से सूक्ष्म, बृहद् से बृहद्, वर्धनशील, विराट् , सम्राट, स्वराट और अधिराट् आदि सबका कारण, निर्गुण एवं सगुण स्वरूप परमेश्वर को नमस्कार है । हे सर्वात्मन्, सर्वभूतेश्वर, सर्वसत्त्वसमुद्भव, सर्वभूत एवं सर्वसत्त्व मनोरथ स्वरूप आपको नमस्कार है। __ चतुर्थ स्तुति है प्रह्लादकृत भगवत्स्तुति । इसमें पुरोहितों की प्राण रक्षा की याचना की गई है अतएव आर्त स्तुति है। हिरण्यकशिपु से निर्दिष्ट पुरोहितगण प्रह्लाद को मारने के लिए कृत्या उत्पन्न करते हैं लेकिन स्वयं १. विष्णुपुराण १।१२।३३-३७ २. तत्रैव १११२।३३ ३. तत्रैव १।१२।३७ ४. तत्रैव १३१२१५१-५४ ५. तत्रैव १११२१४८ ६. तत्रैव १११२।७३ ७. तत्रैव १२१८१३९-४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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