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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
स्तुति करते-करते भक्त उसके दिव्य गुणों का वर्णन करने लगता है । वह चार भुजाओं एवं चार मुखों से अलंकृत विष्णुरूपा और ब्रह्मस्वरूपा है। वह आजीवन कुमारी है। उसका रूप सौन्दर्य अलौकिक है। विभिन्न शस्त्रास्त्रों से वह सुसज्जित है। वह पृथिवी का भार उतारने वाली है । वही कीत्ति, श्री, धृति , सिद्धि , लज्जा, विद्या, संतति , मति, संध्या, रात्रि, प्रभा, निद्रा, ज्योत्स्ना, कांति, क्षमा और दया है। तथा संपूर्ण संकटों का विनाशक भी है । शरणागत रक्षक है। युधिष्ठिर सर्वात्मना अपनी रक्षा के लिए और आसन्न संग्राम में विजय के लिए प्रार्थना करते हैं
जयात्वं विजया चेव संग्रामे च जयप्रदा।
ममापि विजयं देहि वरदा त्वं च साम्प्रतम् ॥
व्याधिग्रस्त , संकट, रोग, मृत्यु आदि से पीड़ित तथा राज्यभ्रष्ट भक्तों के लिए वही एक मात्र गरण्या है इसलिए भक्तराज युधिष्ठिर उसी की शरणागति में समुपस्थित होते हैं
व्याधि मृत्यु भयं चैव पूजिता नाशयिष्यसि ।
सोऽहं राज्यात् परिभ्रष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान् ॥ स्तोत्र से प्रसन्न भगवती दुर्गा विजय का वरदान देती है ----
भविष्यति अचिरादेव संग्रामे विजयस्तव । मम प्रसादान्निजित्य हत्वा कौरववाहिनीम् । राज्यं निष्कण्टकं कृत्वा भोक्ष्यसे मेदिनी पुनः ।
भ्रातृभिः सहितो राजन् प्रीति प्राप्स्यसि पुष्कलाम् ।। शिव सहस्रनामस्तोत्र
विष्णुसहस्रनाम और शिवसहस्रनाम बृहदाकार स्तोत्र है। यज्ञ विध्वंस हो जाने पर खण्डिताभिमान प्रजापति दक्ष भगवान शंकर से सहस्रनामस्तोत्र के द्वारा अपनी रक्षा की याचना करता है । शंकर के गणों ने उसके यज्ञ को विकृत कर दिया । वीरभद्र से आदिष्ट होकर दक्ष देवाधिदेव उमावल्लभ की शरणागति में उपस्थित होता है । विनाश-भय से आक्रांत दक्ष की चित्तवृत्तियां सर्वतोभावेन प्रभु महादेव के चरणों में समर्पित हो जाती है।
__ जब तक सांसारिक मानाभिमान काम आता है, अपनी शक्ति पर पूरा भरोसा रहता है, तब तक उस देवाधिदेव को याद कौन करता ? १. महाभारत, विराटपर्व ६।१६ २. तत्र व ६२४ ३. तत्रैव ६।२८-२९ ४. तत्रैव, शांतिपर्व २८४
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