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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्यय
६. धामबोधक
सूर्य के धाम किंवा लोक बोधक भी नाम हैं । वे आकाशचारी हैं इसलिये उन्हें खग कहा गया है। वे आकाशपति हैं तथा विध्यवीथीप्लवङ्गम - आकाश में तीव्र चलने वाले हैं ।
७. भक्त से सम्बन्धित स्वरूप
भगवान् सूर्य भक्तों को विपत्तियों से बचाते हैं । दुःखों के अपहर्त्ता, रवि तथा विजय दिलाने वाले हैं। शत्रुघ्न, परमप्रभु, फलदाता आदि भी हैं । इस प्रकार इस ३१ श्लोकात्मक स्तोत्र में भगवान् भुवननाथ के विभिन्न स्वरूपों को उद्घाटित किया गया है। शुद्धचित्त से जप करते ही राम का शोक विनष्ट हो गया तथा रावणबध के लिए अद्भुत साहस एवं शौर्य से युक्त हो गए। भगवान् अहस्कर भी अपने नेत्रों से राम विजय की पूर्व सूचना भी प्रस्तुत कर देते हैं ।
ब्रह्माकृत श्रीराम की स्तुति
१६ अनुष्टुप् श्लोकों में निबद्ध यह इतिहासात्मक पुरातन आर्ष स्तुति है।' इस स्तुति में राम का पुरातन इतिहास प्रस्तुत किया गया है । इसके साथ ही राम के सर्वव्यापक स्वरूप को भी उद्घाटित किया गया है । इसमें किसी प्रकार की कामना निहित नहीं है, बल्कि राम की भगवत्ता एवं सर्वसमर्थता तथा सीता को उनकी निज-विभूति के रूप में प्रतिपादित किया गया है ।
रावणबध के अनन्तर अपनी शुद्धता को प्रामाणित करने के लिए देखते ही देखते सीता अग्नि में प्रवेश कर जाती है । सम्पूर्ण वानर दल में माता-विनाश को देखकर हलचल मचा हुआ है । उसी समय सम्पूर्ण देवता, ऋषि, गन्धर्व आदि उपस्थित होकर राम के पूर्व रूप तथा सीता की पवित्रता एवं राम के साथ सनातन सम्बन्ध को उद्घाटित करते हैं ।
राम सम्पूर्ण विश्व के उत्पादक, ज्ञानियों में श्रेष्ठ तथा सर्वव्यापक हैं एवं देवों में श्रेष्ठ स्वयं विष्णु हैं ।' राम वसुओं के प्रजापति ऋतधामा तथा लोकों के आदिकर्त्ता स्वयं प्रभु हैं । वे शत्रुओं के संताप, लोकों के कर्त्ता, धर्त्ता और संहारक तीनों हैं । वे शार्ङ्गधन्वा, हृषीकेश, अन्तर्यामी, पुरुष और पुरुषोत्तम हैं । वे वामन, वेदात्मा, शरणागत वत्सल, स्वयंप्रभु विराट् पुरुष नारायण, सच्चिदानन्द स्वरूप एवं प्रजापति हैं तथा सीता साक्षात्
१. वाल्मीकि रामायण - युद्धकाण्ड ११८
२. तत्रैव ११८.६
३. तत्रैव ११८ । १५
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