SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा यह चिन्ता शोक को मिटाने वाला तथा आयु को बढ़ाने का परमसाधन है ।' विपत्ति, कष्ट, दुर्गम-मार्ग, भयकाल तथा युद्ध में जो एकाग्र हृदय से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी रक्षा स्वयं सर्वसमर्थ भगवान् भास्कर करते इस स्तोत्र के द्वारा भगवान् भुवनभास्कर के विभिन्न रूपों पर प्रकाश पड़ता है । विभिन्न नाम या विशेषण इनके विभिन्न स्वरूप के बोधक हैं। १. प्रकाशमय इनके दीप्त स्वरूप अर्थात् प्रकाशमय रूप को प्रकट करने वाले अनेक विशेषणों का प्रयोग किया गया है-रश्मिमान्, विवश्वान्, भास्कर भुवनेश्वर, रश्मिभावन, प्रभाकर, गभस्तिमान, सुवर्णस्वरूप, भानु, दिवाकर, सहस्त्राचि, मरीचिमान्, तिमिरोमन्थन, अंशुमान्, अग्निगर्भ, तमोभेदी, तपन, अहस्कर आदि । २. त्रैलोक्य (संसार) से सम्बन्धित स्वरूप विभिन्न नामों से स्पष्ट होता है कि सूर्य सम्पूर्ण लोकों के स्रष्टा, समग्रभूत (जीव) समुदाय को अपने-अपने कर्मों में प्रेरित करने वाले (सविता) संसार के पोषणकर्ता (पूजा) संसार के बीजभूत (हिरण्यरेता), जीवनदाता, उत्पत्ति-कारण एवं विश्व के पालक (विश्वकर्मा, विश्वभावन) हैं। ३. सर्वव्यापक __ सूर्य, सविता, विश्व, विश्वभावन आदि विशेषणों से सूर्य के सर्वव्यापक स्वरूप पर भी प्रकाश पड़ता है। ४. जन्मबोधक . कुछ विशेषणों से सूर्य के जन्म पर भी प्रकाश पड़ता है। वे अदिति के पुत्र थे इसलिए आदित्य हुए । एक जगह अदिति-पुत्र भी कहा गया है। ५. निजो स्वभाव स्वभाव स्वरूप तथा उनके विभिन्न उपकरणों पर भी प्रकाश पड़ता है। उनका स्वभाव शिशिर विनाश करने वाला है। तपन, अहस्कर, तमोभेदी, कवि, उग्र, वीर, प्रचण्ड, आतपी, सारंग तथा आनन्द स्वरूप है । उनका शरीर पिंगल है। उनके घोड़े हरे रंग के हैं इसलिए उन्हें हरिदश्व, हर्यश्व तथा सात घोड़ों वाले होने से उन्हें सप्तसप्ति कहा गया है। वे हिरण्यगर्भ भी हैं। १. वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड १०५॥४-५ २. तत्रव, युद्धकाण्ड १०५।२५-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy