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संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा
देवगण राक्षसराज रावण से त्रस्त होकर ब्रह्मा और विष्णु की स्तुति करते हैं। राजा रामचन्द्र रावण-विजय की लालसा से भगवान् सूर्य के निमित्त सुप्रसिद्ध आदित्य हृदयस्तोत्र का पाठ करते हैं । माली, सुमाली आदि 'सुकेश पुत्रों के आतंक से भीत देवगण शंकर एवं विष्णु की स्तुति करते हैं। इस प्रकार रामायण में अनेक स्तुतियां संग्रथित हैं। कुछ मुख्य स्तुतियों का विवेचन इस प्रकार है
देवगणकृत ब्रह्मा और विष्णु स्तुति ब्रह्मा स्तुति
रावण के पास से त्रैलोक्य त्रस्त है। ब्रह्मा का आशीर्वाद प्राप्त कर वह सम्पूर्ण देव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षसों को त्रस्त कर रहा है । अब कोई उपाय शेष नहीं दिखाई पड़ता जिससे इस राक्षसराज का विनाश हो सके। ऋषि शङ्ग के निर्देश पर राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ का समायोजन कर रहे हैं । सभी देव गन्धर्वादि अपने भाग के लिए उस यज्ञस्थल में पधार रहे हैं । भीत देवगण उसी यज्ञशाला में पितामह की स्तुति करते हैं----हे पितामह ! कोई उपाय हो तो बताओ। सात अनुष्टप् श्लोकों में ब्रह्मा की स्तुति की गई है। उनके आशीर्वाद से प्राप्त रावण की अजेयता, एवं विकरालता का वर्णन पांच श्लोकों में किया गया है। ब्रह्मा के स्वरूप पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता । हां प्राचीन परंपरा की तरह ब्रह्मा उपाय सुझाने का काम जरूर कर रहे हैं। विष्णु स्तुति
राजा दशरथ की यज्ञशाला में भगवान् विष्णु का पदार्पण हुआ है । रावण विनाश के लिए ब्रह्मा सहित समस्त देवगण उस परमेश्वर से मनुष्य में अवतार ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करते हैं, क्योंकि मनुष्य को छोड़कर अन्य कोई उसका विनाश नहीं कर सकता।
यह आर्त स्तुति है। ९ अनुष्टप श्लोकों तथा दो वंशस्थ छन्दों में देवगण अपनी वेदना, रावण का अत्याचार आदि भगवान् विष्णु से निवेदित करते हैं। देवों के हृदय में व्याप्त भय, पराजय एवं असहायता तीनों मिलकर प्रभु के चरणों में शाब्दिक रूप में अभिव्यक्त हो जाते है। इस लघु कलेवरीय स्तुति में भगवान् विष्णु के सर्वव्यापक, लोकहितरक्षक एवं शत्रुविनाशक स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है। हरेक विपत्तियों से प्रभु अभयत्व प्रदान करते हैं। वे सर्वसमर्थ हैं, तभी तो देवलोग इस महान् कार्यरावण विनाश एवं त्रैलोक्य रक्षण का काम उस व्यापनशील देव पर सौंप देते हैं---
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