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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन हो गयी । वैदिक इन्द्र की अपेक्षा आवांतर कालीन इन्द्र की छवि धूमिल हो गयी। पाप का भार असह्य होने तथा धर्मात्मा जीवों के पीड़ित किए जाने पर त्रिदेव में से किसी एक की स्तुति की जाने लगी। स्तोता स्तुत्य की महत्ता को प्रकट करता और उसी से जगदुद्धार की याचना की जाती थी। करुणार्द्र होकर, भयभीत होकर या किसी सांसारिक ऐश्वर्य की कामना से स्तुति की जाने लगी। उपर्युक्त सकाम स्तुतियों के अतिरिक्त निष्काम स्तुतियों की एक विधा का भी विकास हुआ जिसमें केवल अपने उपास्य का गुणगान ही । उसका लक्ष्य था। ऋग्वेद का पुरुष सूक्त और नासदीय सूक्त इस प्रकार के स्तुतियों के उत्स हैं। ऐसे स्तुतियों पर औपनिषदिक ज्ञानधारा का भी प्रभाव पड़ा। इनमें केवल प्रभु के गुण, उनकी सर्वसमर्थता आदि का प्रतिपादन कर उनके लोकातीत स्वरूप को भी उद्घाटित किया गया। सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों में उपास्य की स्तुति की गई। निर्गण, निराकार ही विश्वमंगल के लिए सगुण साकार हो जाता था। "ईशावास्योपनिषद्" का आठवें मंत्र (जो परमसत्ता को निर्गुण सगुण दोनों मानता है) का विस्तार बहुत काफी हुआ। देवों के अतिरिक्त नदेवों की भी स्तुति की जाने लगी। स्वयं प्रभु ही विश्वरक्षणार्थ नदेवों के रूप में अवतीर्ण होते थे। आवांतर काल में अवतारवाद को काफी बल मिला। नदेवों की स्तुतियों के अतिरिक्त श्रेष्ठ ब्राह्मण, ऋषि एवं ज्ञानी जनों की भी स्तुति की गई। निर्जीव वस्तुओं में भी देवत्व का दर्शन कर उसे सामर्थ्यवान् मानकर उनकी गुणगाथा गायी गई। चन्द्रमादि ग्रह नक्षत्रों की भी उपासना की जाने लगी। धरती को माता मानकर भक्तगण श्रद्धासिक्त हृदय से उसकी पूजा करने लगे। रामायण को स्तुतियां ... रामायण आदिकाव्य है तो महर्षि वाल्मीकि हमारे आदिकवि । रामायण हिन्दू संस्कृति का अक्षय कोश है। इसमें विभिन्न विषयों के अतिरिक्त अनेक भक्तों द्वारा अपने उपास्य के प्रति स्तोत्र भी समर्पित किए गए हैं। विविध कामनाओं से प्रेरित होकर पुत्रादि धन-दौलत , आयुष्य, विजय, एवं विश्वमंगल के लिए भक्त जन अपने-अपने उपास्य के चरणों में स्तुति समर्पित करते हैं । दुःख दैन्य से पीड़ित होकर, राक्षसों से आतंकित होकर रक्षा के निमित्त से प्रभु की स्तुति की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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