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________________ संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा के लिए उद्गाता उचित स्वर में उस देवता का स्तुति मन्त्र गाता था। सामवेद में १८७५ ऋचाएं हैं जिसमें केवल ९९ ऋचाएं नवीन हैं। सामवैदिक स्तुतियां संगीत की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें दो गान हैं - पूर्वाचिक और उत्तराचिक । पूर्वाचिक के अन्तर्गत ग्रामगान. आरण्यकज्ञान तथा महानाम्नी आचिकगान है और द्वितीय में ऊहगाम एवं उह्यगान का संकलन है। अथर्ववेद में ऋग्वेद के मन्त्रों का ही संकलन है। लगभग पंचमांश ऋग्वेद से ही गृहीत हैं, शेष में जादु-टोना, मन्त्र-तंत्र आदि हैं। इस प्रकार वेदों में अनेक प्रकार की स्तुतियां पायी जाती हैं। विभिन्न भक्तों द्वारा विभिन्न कामनाओं से प्रेरित होकर अपने उपास्य के चरणों में स्तुति समर्पित की गई है। इनमें प्रभु के सौन्दर्य निरूपण के अतिरिक्त काव्य का आविल एवं अनलंकृत निसर्ग रमणीय लावण्य भी दृष्टिगोचर होता है। महाकाव्य एवं पुराणों को स्तुति-सम्पत्ति वैदिक मानसरोवर से निःसृत, स्वच्छसलिला स्तुति-स्रोतस्विनी, महाकाव्य काल तक आते-आते अत्यधिक विस्तार को प्राप्त होती हुई, असंख्य जीवों को अपनी मादकता, पवित्रता और रमणीयता से आप्यायित करती हुई, उनकी परम शरण्या बनी। भक्त अपने हृदय से भगवान् के निमित्त, उनके विभिन्न नाम – गुणात्मक स्तुतियों का गायन कर उसके शाश्वत वात्सल्य को प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठे। अपनी भावना के अनुसार उस परम सत्ता को विभिन्न देवों के रूप में स्वीकार कर उनको परम शरण्य मानकर उनके प्रति श्रद्धासिक्त हृदय से वागञ्जलियां समर्पित की गई। वैदिक देवता महाकाव्य एवं पुराणकाल में आकर विविध रूपों में प्रचलित हो गए। जिन प्राकृतिक विभूतियों का दर्शन कर समदर्शी, प्रज्ञा-. विचक्षण, ऋषिगण अपने कार्यों के निमित्त अग्नि इन्द्रादि के रूप में आवाहन किया था, वे ही अब त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तथा विभिन्न अवतारों के बाराह, मत्स्य, कूर्म आदि के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। ऋग्वेद का शक्ति तत्त्व-वाक् देवी आवांतर साहित्य में दुर्गा, काली, लक्ष्मी आदि के रूप में विकसित हुई। इन देवों के अतिरिक्त कुछ वंश देवों का भी उदय हुआ । जैसे मेघनाथ "राम-विजय" के लिए माता निकुम्भला के.. मन्दिर में जाकर उनकी उपासना करता है। इन्द्र, अग्नि, मरुत्, वरुण आदि देवों की अर्चना प्रथा समाप्त प्राय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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