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तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥'
श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
उषा से सम्बन्धित स्तुतियां
ऋग्वैदिक देवों में उषा की महत्ता प्रसिद्ध है । लगभग २० स्थलों पर प्रकाश, ज्ञान, धन, आयुष्य, भोगादि की कामना से ऋषियों ने रूपवती ऋतावरी उषा की स्तुति की है। भक्तों ने उस देवी के लिए अनेक साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग किया है । मघोनी ( दानशीला), विश्ववारा - सभी प्राणियों के द्वारा वरणीया, प्रचेता - प्रकृष्टज्ञान से सम्पन्न, सुभगा, विभावरी, दास्वती, पुरानी युवति, हिरण्यवर्णा, अश्वावती, गोमती, जीरा (प्रेरित करने वाली ), वाजिनीवति, शत्रुहन्त्री आदि सुशोभन विशेषणों से स्तोताओं ने अपने इष्टदात्री देवी को अलंकृत किया है ।
संसारिक अभ्युदय की लालसा, भौतिक उत्थान, भोग प्राप्ति, धनसंमृद्धि एवं शत्रु विनाश के लिए भक्त उषा की स्तुति करता है । प्रकाशवती आकाशात्मजा देवी उषा से याचना करता है
सह वामेन न उषो व्युच्छा दुहितर्दिवः ।
सह द्युम्नेन बृहता विभावरि राया देवी दास्वती ॥
वह अश्व, गाय, धन-दौलत की स्वामिनी है । अपने भक्तों को सारे पदार्थों से परिपूर्ण करती है। भक्त याचना करता है कि हे ऋतावरि ! मेरे प्रति सुन्दर वाणी बोलो और धन-दौलत से मुझे पूर्ण करो ।
एक सुन्दर दृष्टांत सकाम स्तुति के भाव को अधिक स्पष्ट करने में सहायक है । जैसे धन की इच्छा वाले समुद्र में नाव को सजाकर तैयार करते हैं उसी प्रकार भक्त उषा के आगमन पर रथ लेकर तैयार रहते हैं । वह धनदात्री है ।
उषा भक्तों को सम्पूर्ण प्राणियों को अपने कर्मों में प्रेरित करती है । वह हमेशा अपने भक्तों पर नजर लगाए रहती है । अपने स्तोताओं को धन देती है तथा उसके शत्रुओं एवं पापों का विनाश करती है । इसीलिए भक्त अपने अरिनाश की याचना करता है
अपद्वेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उच्छदपसिधः ॥
१. ऋग्वेद ३.६२.१०
२. तत्रैव १.४८.१
३. तत्रैव १.४८.२
४. तत्रैव १.४८.३ ५. तत्रैव १.४८.८
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