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संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा
कदमवाले, कामनाओं को पूर्ण करने वाले विष्णु के पास जावे । जिसने संपूर्ण विश्व को नापा था। जो सम्पूर्ण लोकों को धारण करता है । और अन्त में भक्त की यह कामना होती है कि मैं उस विष्णु के परम आनन्दमय निकेतन को प्राप्त करूं, जहां पर मधु का सरोवर है ।
इस प्रकार विष्णु सर्वव्यापक, लोकातीत, भक्तों के परम हितकारी उरुक्रम, उरुगाय, गिरिचर, समर्थ, कामप्रदाता और सर्वश्रेष्ठ देव है । सविता
ऋग्वेद के ११ सूक्तों में सविता देव की स्तुति की गई है। मुख्यत वह स्वर्णिम देवता है। उसके शरीर के प्रत्येक अंग स्वर्णिम हैं। वह स्वर्णिम रथ पर चलता है। उसका रथ सफेद पैर वाले दो अश्वों द्वारा खींचा जाता है।
__ वह सम्पूर्ण जगत् का प्रकाशक देवता है। समस्त जीव समुदाय को अपने-अपने कर्मों में प्रेरित करता है। उसका स्थान धूलरहित अन्तरिक्ष लोक है।
सविता एक शक्तिशाली देवता है। उसे "असुर" संज्ञा से अभिहित किया गया है । उसके व्रत नियत हैं। कोई भी उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। सभी देवता उसके नेतृत्व का अनुसरण करते हैं। इन्द्र, वरुण, रुद्र, मित्र अर्यमन् आदि कोई भी देवता उसका गतिरोध नहीं कर सकते। वह सम्पूर्ण जगत् को विश्राम देता है। अपने स्तोताओं की सभी कामनाओं को पूर्ण करता है।
सविता प्रेरक देवता है। सबको अपने-अपने कर्मों में लगाता है । भक्तों के पापों को दूर करता है। ऋषि प्रार्थना करता है कि हे सविता देव ! समस्त पापों को दूर कर हम सबका कल्याण करो।' वह भक्तों को धन देता है । रोग को दूर करता है तथा मायावियों का विनाश करता है । सविता देव से भक्त प्रार्थना करता है कि हे सविता अन्तरिक्षस्थ धूलि-रहित मार्ग से आकर मेरी रक्षा करो, हमारी तरफ से बोलो।
इस प्रकार स्वणिम सविता सर्वव्यापक, प्रकाशमान, रक्षक, पाप विनाशक, प्रकाशक, उत्प्रेरक धनदाता एवं हितकारक देवता है। यही कारण है कि आज भी प्रत्येक हिन्दू के घर में उनकी उपासना की जाती है । सुप्रसिद्ध गायत्री मन्त्र से हर भक्त उनकी उपासना करता है
१. यजुर्वेद ३०.३ २. ऋग्वेद १.३५.११
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