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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन तुम मेरी पुकार का इस मृत्यु काल में प्रत्युत्तर दो। मेरे समस्त पाशों को काटकर मुझे जीवन प्रदान करो।
ऋग्वेद में लगभग एक दर्जन वरुण विषयक सूक्त हैं जिनके आधार पर वरुण नैतिकता का अधिष्ठाता सिद्ध होता है । नैतिक विधान को वेदों में ऋत कहा गया है, अतः वरुण को 'ऋतस्य गोप्ता' विशेषण से विभूषित किया जाता है। उसकी दृष्टि से कुछ भी छिपा नहीं रहता। अत: वह सर्वद्रष्टा है । यह सर्वथा उचित है कि ऐसे धर्मप्रिय सर्वोच्च सत्ता के समक्ष निर्बल प्राणी अपनी त्रुटियों को खुले दिल से स्वीकार कर लेता है और पाप विनाश के लिए अभ्यर्थना करता है कि हे वरुण ! हम मानवों से जो अपराध हुआ है या अज्ञानवश कर्त्तव्य पालन में जो त्रुटि हुई है, उन पापों के कारण हमारा विनाश न करो।
वरुण विषयक स्तुतियों के अवलोकन से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि भक्तों ने इनमें अपने हृदय को खोलकर रख दिया है । हृदय के समस्त अच्छेबुरे भावों को विवृत कर दिया गया है। वास्तव में ये हृदय से निकली हुई बातें हैं, अतः सबके हृदय को छू लेती हैं।
इस प्रकार वरुण नैतिक सम्राट, ऋत का शासक, धृतव्रत, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, दयालु, पतितपावन, सर्वद्रष्टा और भक्तों के परमशरण्य के रूप में चित्रित किए गए हैं। विष्णु से सम्बद्ध स्तुतियां
विष्णु ऋग्वेद का प्रसिद्ध देवता है । इसके निमित्त पांच स्तुतियां गायी गई हैं। यह परोपकारी, धनदाता, उदार, सबका संरक्षक तथा सम्पूर्ण विश्व का भरण पोषण करने वाला है। उसके चरित्र की मुख्य विशेषता है कि वह गर्भ का संरक्षक है । गर्भाधान के निमित्त अन्य देवों के साथ उसकी स्तुति की जाती है।
स्तुतियों में उसका मानवीय रूप भी स्पष्ट परिलक्षित होता है । उसके तीन कदमों का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है । विक्रम, उरुक्रम, उरुगाय आदि शब्दों के द्वारा उसके तीन कदमों का उल्लेख ऋग्वेद में करीब एक दर्जन बार किया गया है। अपने तीन कदमों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व को नापा था। उसके दो कदम तो दिखाई पड़ते हैं लेकिन एक कदम अदृश्य है । अर्थात् विष्णु सर्वव्यापक तो है ही लोकातीत भी है।
वह सबके द्वारा स्तुत्य है । उसका लोक परमानन्द का धाम है । भक्त जन प्रार्थना करते हैं कि मेरी शक्तिशाली प्रार्थना ऊर्ध्वलोक निवासी, विशाल १. ऋग्वेद १.२५.१९-२१ २. तत्रैव ७.८९.११
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