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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
इंगित करता है, जो भक्ति का अक्षय स्रोत है, आद्यबिन्दु है । इससे यह ध्वनित होता है कि उस महिमावान् को छोड़कर किसी अन्य की उपासना में जीव का त्राण नहीं है, शांति नहीं है, अन्यत्र कहीं विराम नहीं है, विश्राम नहीं है। एकमात्र उसी की आराधना अभीष्ट है । वही विविध नामों से जाना जाता है, वही हिरण्यगर्भ है, वही विश्वकर्मा है, वही प्रजापति है, वही पुरुष है । तात्पर्य यह है कि एकमात्र वही देवाधिदेव है ।
सकाम स्तुतियां
सांसारिक अभ्युदय, दुःख - निवृत्तयर्थ, शोकप्रशमनार्थ, धन-दौलत, पुत्र-पौत्र, पत्नी, आयुष्य, यश, ऐश्वर्य, विजय, शक्ति, सुन्दर शरीर की प्राप्ति के लिए, मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भवसागर संतरणार्थ, बुद्धि जागरण हेतु, दिव्यलोक की प्राप्ति के लिए एवं दया के लिए समर्पित स्तुतियां इस संवर्ग के अन्तर्गत आती हैं। ऋग्वेद में ऐसे ही स्तुतियों का बाहुल्य है । विभिन्न प्रकार की कामना से ऋषि, गृहपति अपने उपास्य की स्तुति करता है । अग्नि, इन्द्र, सविता, रुद्र, वरुण, विष्णु, मरुत एवं उषा की स्तुतियां इसी कोटि के अन्तर्गत आती हैं। इन देवों की स्तुतियों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
अग्नि
अग्नि वैदिक आर्यों का प्रमुख देव है । लगभग दो सौ स्वतंत्र सूक्तों में और अन्यत्र अन्य देवों के साथ इसकी स्तुति की गई है । याज्ञिक प्रधानता के कारण लगभग सभी मण्डलों का प्रथम सूक्त अग्नि देव को ही समर्पित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मंत्र में ही इस देवता की स्तुति की गई
है
अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥'
इस सूक्त में अग्नि से विभिन्न प्रकार की याचना की गई है—हे अग्नि ! नित्य प्रति वर्धनशील, कीर्तिदायक एवं अतिशय वीर पुत्रों से युक्त धन हमारे लिए धारण करो । तू मेरे यज्ञ की रक्षा करो। हे हिंसारहित यज्ञों के शासक, नियम के संरक्षक, अत्यन्त प्रकाशमान, नित्यवर्धनशील अग्नि ! जिस प्रकार पिता पुत्र के लिए कल्याणकारक होता है उसी प्रकार तू हमारे कल्याण के लिए हमारे साथ होवो । '
विभिन्न स्तोताओं ने अग्नि को विभिन्न विशेषणों से विभूषित किया है । घृतपृष्ठ, धृतमुख धुतलोम, धृतकेश आदि विशेषणों के द्वारा अग्नि के
१. ऋग्वेद १.१.१
२. तत्रैव १.१.९
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