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________________ २७ संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा की संज्ञा दी है। मर्त्य अर्थात् भौतिक-सृष्टि के साथ-साथ मानसी-सृष्टि (वेदसृष्टि) दोनों उसी से अभिव्यक्त होती है। उससे ही समस्त लोकों की उत्पत्ति हुई है। ____ इस प्रकार हम देखते हैं कि विश्वातीत पुरुष भौतिक में अन्तर्भत हो जाता है। अमर मर्त्य के रूप में व्यक्त हो जाता है तथा भौतिक शरीर में मूर्तित हो जाता है। हिरण्यगर्भ सूक्त हिरण्यगर्भ सूक्त ऋग्वेद का प्रसिद्ध सूक्त है। प्रत्यक्ष द्रष्टा ऋषि अपने उपास्य के गुण, ऐश्वर्य, विभूति और शरण्यता को देखकर गद्गगिरा में उसी का गायन करने लगता है । अर्वाचीन स्तुतिकाव्य का प्रारम्भिक मनोरम स्थल ये ही ऋग्वेदीय उपवन हैं, जहां पर बैठकर अपने उपास्य की छाया में स्थित होकर प्रत्यक्षद्रष्टा ऋषि मनसा वाचा और कर्मणा उनकी स्तुति करता है। अपनी ही पारदृश्बा प्रज्ञाचक्षुओं से उसकी विभूति, ऐश्वर्यलीला, गुण-गरिमा का दर्शन करता है और पुनः उसे शब्द के माध्यम से अभिव्यक्त करने लगता है हमारा इष्टदेव कोई सामान्य पुरुष नहीं बल्कि सृष्टि का नियामक है । वह सृष्टि के आदि में विद्यमान था। सम्पूर्ण जगत् का स्वामी है एवं द्यावा, पृथिवी तथा आकाश को धारण करने वाला है। सम्पूर्ण जगत् को प्राणन करता है, जीवन देता है, प्रेरित करता है और गतिमान् बनाता है । वह स्वयं शक्ति का स्रोत है, ऊर्जा का पुंज है, शक्ति दाता है। वह समस्त देव, मनुष्य, मर्त्य एवं अमरत्व का स्वामी है । कोई भी उसके आज्ञा और नियम का उल्लंघन नहीं कर सकता है । वह सबका प्रभु है। इस अध्यात्मपरक सूक्त का पर्यवसान कामना में होता है। ऋषि अपने उपास्य की महत्ता का प्रतिपादन कर उस सामर्थ्यवान् से कष्ट निवृत्ति की कामना करता है, संसारिक एवं पारलौकिक सुख की याचना करता है'मानो हिंसीज्जनिता यः पृथिव्याः ।' अन्त में ऋषि उस देवाधिदेव से अक्षय धन सम्पत्ति एवं प्रभूत समृद्धि मांग बैठता है-- यत्कामास्ते जहमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥' इस सूक्त में आराध्य देव के प्रति स्तोता की एकनिष्ठता, अनन्यता एवं परानुरक्ति की अभिव्यक्ति होती है। उसका प्रभु सर्वव्यापक सर्वशक्तिशाली एवं अनुग्रह-कर्ता है। इस महिमावान् देव की उपासना ही जीव का एकमात्र शरण है । "कस्मै देवाय हविषा विधेम" यह भक्ति का अमोघ सूत्र है। "कस्मै" यहां प्रश्नवाचक नहीं बल्कि उस सूक्ष्म सामर्थ्यवान् सत्ता की ओर १. ऋग्वेद १०.१२१.१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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