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संस्कृत साहित्य में स्तुति काव्य की परम्परा
विभिन्न भावों से भावित भक्त हृदय स्तुति में प्रवृत्त होता है। संसारिक कामनाओं के साथ आस्था तत्त्व को भी स्तुति प्रादुर्भाव के निमित्त माना गया है। स्तव्य के प्रति ऐसा विश्वास होना आवश्यक है कि निश्चय ही वह मेरे कार्यों को पूरा कर सकता है, विपत्तियों से बचा सकता है। इस प्रकार श्रद्धा विश्वास, आस्था, ज्ञान, शोक-करुणा का भाव, आदि स्तुति के निमित्त माने गए हैं। वैदिक साहित्य में स्तुतियां
__ स्तुतिकाव्य की परम्परा अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है। सर्वप्रथम स्तुतियों का उत्स ऋग्वेद में मिलता है। प्राकृतिक शक्तियों के प्रति आकर्षित होकर, उन्हें देव के रूप में प्रतिष्ठित कर ऋषि उनकी अभ्यर्थना करते पाए जाते हैं । भक्त के सुख-दुःख, उत्थान-पतन, आशा-निराशा में वे प्राकृतिक देव पुत्र, भाई, बन्धु, पिता एवं संरक्षक बनकर उसकी सहायता करते हैं । इस कार्य के बदले श्रद्धायुक्त हृदय से ऋषि विभिन्न अवसरों पर स्तोत्र, अर्चना, बलि आदि समर्पित करते थे।
किसी सांसारिक कामना, विपत्ति से रक्षा एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए वेदों में स्तुतियां गायी गई हैं। संकट की घड़ी में संपूर्ण भौतिक शक्तियों को असमर्थ, असहाय देखकर भक्त उस प्राकृतिक देव विशेष की स्तुति करता है, जो उसे उस महान् पीड़ा से बचा सके । उसे ऐश्वर्य विभूति दिला सके । इसी प्रकार से विभिन्न प्राकृतिक देवों की अग्नि, इन्द्र, सविता, वरुण, उषा, मरुत, रुद्र, एवं अश्विनीकुमार आदि के रूप में स्तुति की गई है।
अनादिकाल से मनुष्य का प्रकृति के साथ अविच्छिन्न और अविच्छेद्य संपर्क चला आ रहा है । प्रकृति में एक ऐसी रमणीयता व्याप्त है जो सहज में ही मानव को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है तथा उसके हृदय को स्पंदित कर देती है । प्रकृति की विभूतियां, विस्तृत नीलाकाश, सौन्दर्यशालिनी उषा का अनुगमन, जाज्वल्यमान अग्नि, प्रतापशाली आदित्य एवं शीतल ज्योत्स्नायुक्त चन्द्र अनादिकाल से मानवीय अन्तरात्मा के आकर्षण केन्द्र रहे हैं। सांसारिक दुःख-दैन्य, शोक-करुणा से पराजित मनुष्य ने अपनी आत्मा की शांति के लिए इन विभूतियों का आश्रय ग्रहण किया। इनके अत्यन्त रमणीय शील-सौन्दर्य, रूप-लावण्य के प्रति आकर्षित होकर भक्त हृदय आनन्द से आप्यायित हो उठा तथा उनकी महत्ता, शरण्यता, दयालुता पर मुग्ध होकर उन्हीं की स्तुति करने लगा। यही स्तुति साहित्य के उद्भव का रमणीय सरोवर हैं। ऋग्वेद की स्तुति सम्पदा
सम्पूर्ण ऋग्वेद स्तोत्रात्मक है। तुदाद्रि गणीय "ऋच स्तुती" से
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