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________________ २० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन बार-बार के कृतोपकारों से उपकृत होकर भक्त उनकी स्तुति करने लगता है। उपकार से मन विगलित हो जाता है, अन्त में विद्यमान सत्त्व का उद्रेक हो जाता है-तब श्रद्धा और विश्वास के साथ उस हृदयाराध्य के प्रति कुछ गुनगुनाने लगता है। प्रार्थना या स्तुति से कुछ ऐसा भी हो जाता है जिस पर भक्तेत्तर लोगों को सहसा विश्वास नहीं होता। मनुष्य ज्यों ही आत्मस्थ होकर कालातीत ईश्वर के सान्निध्य में समुपस्थित हो जाता है, त्योंही उसकी खोई हुई एवं क्षीण शक्ति वापस मिल जाती है, उसे शाश्वत जीवन और भगवद्विभूति की उपलब्धि हो जाती है । ऐसा कुछ होते ही सारी विपत्तियां, सारे दुःख स्वतः विलीन हो जाते हैं। वह शाश्वत मनोराज्य में स्थिर होकर परमानन्द में निष्ठित हो जाता है । स्तुति का महत्त्व जीवात्मा का परमात्मा के साथ, उपासक का उपास्य के साथ और भक्त का भगवान के साथ अनन्य भक्ति-प्रेममय सम्बन्ध का नाम स्तुति हैं । यह साधक की ईश्वर प्राप्ति के लिए परम आकुलता या आर्तता की भावना की अभिव्यक्ति है विपदः सन्तु न: शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो। भवतोदर्शनं यत्स्यादपुनर्भव दर्शनम् ॥ स्तुति के द्वारा भक्त परम शांत मन वाला हो जाता है। स्तुति के माध्यम से वह अपने हृदयस्थ सुख-दुःख रूप मानसिक भावों को प्रभु चरणों में समर्पित कर देता है । अपना सब भार उन्हीं के ऊपर रखकर स्वयं उन्हीं का हो जाता है। स्तुति एक महान् अमोघ बल है, विपत्ति के दिनों का सहारा है, असहायों का सहायक है, अनाथों का नाथ है, अशरणों का परम शरण्य है। अंग्रेज महाकवि टेनीसन के शब्दों में-"जगत् जिसकी कल्पना करता है उससे कहीं अधिक महान कार्य प्रार्थना किंवा स्तुति के द्वारा सिद्ध हो सकता है।" भगवन्नाम की महिमा पर श्रद्धा विश्वास होने पर उसमें अनन्य प्रेम की प्राप्ति होती है। भगवान प्रेमी के प्रेम में वशीभूत हो जाते हैं। किंवा बन्ध जाते हैं। हर क्षण सारे योग-क्षेम का वहन उन्हें ही करना पड़ता है। शश्वदागत विपत्तियों से भक्तों की रक्षा स्वयमेव गोविन्द करते हैं । स्तुति के द्वारा जो अव्यय है, अधोक्षज है, सर्वतंत्रस्वतंत्र है, आद्य ईश्वर है, अन्तबहिरवस्थित है, वही प्रभु भक्त का, स्तोता का अपना निज-जन हो जाता है। १. श्रीमद्भागवतमहापुराण १.८.२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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