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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन शील-सौन्दर्य, गुण-सौन्दर्य, परमप्रभु श्रीकृष्ण में ही निहित है, एकत्रावस्थित है त्रिभुवनकमनं तमालवणं रविकरगौरवाम्बरं दधाने । वपुरलककुलावृत ननाब्जं विजय सखेरतिरस्तु मेऽनवद्या ॥ शुकदेव-जो सर्वज्ञ हैं, सर्वद्रष्टा हैं, बालयोगी हैं, अवधूत-शिरोमणि हैं --उनकी स्तुति का आलम्बन वह है-जो संपूर्ण लोक का आश्रय है, जिसके नामोच्चारण मात्र से ही सारे कल्मष सद्यः समाप्त हो जाते हैं । वह सामान्य नहीं बल्कि धर्ममय है । तपोमय है, ज्ञानियों का आत्मा तथा भक्तों का स्वामी है।" स्तुति के प्रमुख तत्त्व श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों के पर्यालोचन से निम्नलिखित तत्त्व प्रकट होते हैं१. आत्मसमर्पण अपने शरण्य या उपास्य के चरणों में स्वसर्वस्व समर्पण की भावना प्रत्येक स्तुति में पायी जाती है । भक्त क्षणभर में अपना पाप-पुण्य आदि सब कुछ प्रभु के चरणों में समर्पित कर उसी का हो जाता है क्षणेन म]न कृतं मनस्विनः संन्यस्य संयान्त्यभयं पदं हरेः ॥ भक्तिमति गोपियां अपना घर-द्वार, पति-पुत्र, धन-परिवार सब कुछ का परित्याग कर प्रभुचरणों में निवास की याचना करती है । जब जीव संसार चक्र में क्रूरकाल-व्याल से भयभीत हो जाता है, उसका कोई अब रक्षक नहीं दिखाई पड़ता, तो वह सर्वात्मना स्वयं को प्रभु चरणों में अर्पित कर अभय हो जाता है। द्रौण्यास्त्र से प्राणसंकट उपस्थित होने पर उत्तरा प्रभु चरणों में अपने को समर्पित कर देती है नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥ परमभागवत पितामह भीष्म संसार से विधूतभेद मोह होकर प्रभु चरणों में अपने को समर्पित करते हैं १. श्रीमद्भागवतमहापुराण १, ९, ३३ २. तत्रव, २.४.१५ ३. तत्रैव, २.४.१९ ४. तत्रैव ५।२०१२३ ५. तत्रैव १०।२९।३१ ६. तत्रैव शा९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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