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________________ स्तुति : अर्थ एवं स्वरूप भर्तृहरि, बालरामायण तथा नैषध महाकाव्य में इसका प्रयोग हुआ है।' अमरकोश में इसे स्तुति का पर्याय कहा गया है। उपरोक्त शब्दों के अतिरिक्त विकत्थन, स्तव, स्तोत्र, श्लाघा, शंसा, स्तवन आदि शब्द भी स्तुति के पर्याय के रूप में व्यवहृत हुए हैं। स्तुत्यर्थक धातुएं ___ सर्वप्रथम आचार्य यास्क ने निघुण्टु में ४४ स्तुत्यर्थक धातुओं का निर्देश किया है-अर्चति, गायति, रेभति, स्तोभति, मूर्घयति, गणाति, जरते ध्वयते, नदति, पृच्छति, रिहति, धमति, कृणयति कृपण्यति, पनस्यति, पनायते, वल्गूयति, मन्दते, भन्दरेति, छन्दति, छदयते, शशमानः, रंजयति, रजयति, शंसति, स्तौति, यौति, रौति, नौति, भणति, पणायति, पणते, सपति, पपृक्षा, मध्यति, वाजयति, पूजयति, मन्यते, नदति, रसति, स्वरति, वेनति, मन्द्रयते, जल्पति । इसके अतिरिक्त अध्येषणा अर्थ में चार धातुओं का तथा मांगना (प्रार्थना) अर्थ में १७ धातुओं का उल्लेख किया है। पाणिनीय धातु पाठ में लगभग १९ स्तुत्यर्थक धातुओं का निर्देश मिलता है। सिद्धांत कौमुदी के अनुसार उनका विनियोग इस प्रकार है सिद्धांत कौमुदी में विनियुक्त धातु संख्या १. अर्कस्तवने १७६८ २. अर्चपूजायाम् १९४७ . ३. ईड स्तुतौ १०८९ ४. ऋच-स्तुती १३८६ ५. कत्थश्लाघायाम् ३७ ६. गा स्तुती ७. चाजपूजानिशामनयोः ८. णु स्तुती ९. दिवुक्रीडाविजिगीषा व्यवहारधुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु ११०२ १०. पणपन व्यवहार स्तुतौ च ४६९,४७० ११. भजसेवायाम् १०६७ १२. मदि स्तुति मोद मदस्वप्नकान्तिगतिषु च १३. मह पूजायाम् ७७६ १. मो० वि० संस्कृत अंग्रेजी कोश, पृ० ५६७ २. अमरकोश १.६.११ ३. निघण्टु (मूल पाठ) ३।१४ ४. तत्रैव ३१२१ ५. तत्रैव ३।१९ १११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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