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श्रीमद्भगवाद की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन यजुर्यजते ।' अर्क शब्द "अर्क स्तवने धातु से निष्पन्न स्तुति किंवा स्तवन अर्थ में प्रसिद्ध है । ऋग्वेद और अथर्ववेद में अर्क शब्द स्तुति, स्तोत्र, सूक्त और संगीत के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। स्तुतिकर्ता या स्तुतिगायक के लिए भी अर्क शब्द आया है। भ्वादिगणीय अर्च-पूजायाम् धातु से अर्च शब्द निष्पन्न हुआ है । ऋग्वेद में स्तुति अर्थ में इसका प्रयोग किया गया है। भट्रिकाव्य में भी 'अर्च' का प्रयोग स्तुति के अर्थ में किया गया है। जरा शब्द भी स्तुत्यर्थक है । लौकिक संस्कृत में इसका अर्थ वयो हानि हो गया है । ऋग्वेद में स्तुति के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग हुआ है। निरूक्तकार ने भी इसी अर्थ में इसका प्रयोग किया है। स्तोता के अर्थ में जरिता शब्द मिलता है। प्र उपसर्ग पूर्वक भ्वादिगणीय शंस-स्तुती धातु से निष्पन्न प्रशंसा शब्द भी स्तुति के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है । ऋग्वेद में इसका प्रयोग यत्र-तत्र स्तुति अर्थ में मिलता है। एक स्थान पर उत्तेजक या उत्साहवर्द्धक स्तुति के अर्थ में इसका विनियोग हुआ है।" इड-स्तुतौ धातु से निष्पन्न ईडा शब्द स्तुति अर्थ में ही प्रयुक्त होता है । प्राचीन एवं अर्वाचीन दोनों प्रकार के कवियों ने इस शब्द का प्रयोग किया है । ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र में ही इसका विनियोग हुआ है"अग्निमीडे पुरोहितम्"।२ ऋग्वेद के अतिरिक्त अथर्ववेद, वाजसनेयी संहिता, रामायण आदि में भी इस शब्द का स्तुति अर्थ में ही उपयोग हुआ है।" भागवतकार ने बहुशः स्थलों पर इसका विनियोग किया है ।" णु स्तुती से क्तिन् प्रत्यय के योग से निष्पन्न शब्द 'नुति' स्तुति का पर्याय है ।१५
१. निरूक्त ७।१२ २. मोनीयर विलियम्स-संस्कृत अंग्रेजी कोश, पृ० ८९ ३. तत्रैव, पृ० ८९ ४. ऋग्वेद ४.१६.३ ५. भट्टिकाव्य २२० ६. ऋग्वेद १.२७.१०, १.३८.१३, १०.३२.५ ७. निरूक्त १०८ ८. निघण्टु, ३१६ ९. हलायुध, पृ० ७२५ १०. मो० विलियम्स संस्कृत अंग्रेजी कोश, पृ० ६९४ ११. ऋग्वेद १.८४.१९ १२. तत्रव १.१.१ १३. मो० वि० संस्कृत अंग्रेजी कोश, पृ० १७० १४. श्रीमद्भागवतपुराण ३।१९।३१, ३.३३.९, ७.८.३९ १५. हलायुध कोश, पृ० सं० ७२५
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