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स्तुति : अर्थ एवं स्वरूप
प्रयोग हुआ है । आशीष के अर्थ में भी स्तुति शब्द का विनियोग मिलता है ।'
इस प्रकार स्तुति में उपास्य के गुणों का संकीर्तन, स्तवन के साथसाथ धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य आदि की याचना भी निहित रहती हैं । स्तुति के पर्याय शब्द
प्राचीन भारतीय वाङ् मय में मन्त्र, छन्द, शस्त्र, अर्क, अर्च, स्तोम, स्तव, जरा, ऋचा, यजु, साम आदि शब्द स्तुति के पर्याय माने गए हैं । मन् धातु से मन्त्र शब्द निष्पन्न होता है मन का प्रयोग ज्ञान, विचार और सत्कार तीनों अर्थों में होता है ।' यास्क ने तीनों अर्थों में मन्त्र शब्द के प्रयोग को देखकर इसका निर्वचन किया है - मन्त्राः मननात् । दिवादिगणीय मन् धातु से निष्पन्न मन्त्र शब्द का प्रयोग ज्ञान अर्थ में होता है - दैवादिकमन्धातोर्मन्यते ज्ञायतेऽनेनेति मन्त्रः, ईश्वरीयादेशा अनेन ज्ञायन्ते इति भावः । " तनादिगणीय मन् धातु से निष्पन्न मन्त्र शब्द का प्रयोग सत्कार किंवा स्तुति पूजा अर्थ में होता है - मन्यते विचार्यते सक्रियते वा ईश्वरीयादेशोऽत्र । * ऋग्वेद, अथर्ववेद तथा तैत्तिरीय संहिता में इस शब्द का प्रयोग प्रार्थना अर्थ में हुआ है ।' छद् धातु से छन्द शब्द निष्पन्न होता है । छन्दांसि छादनात् 19 निघण्टु में इस शब्द का प्रयोग स्तुति के अर्थ में हुआ है । स्तोम शब्द स्तवनार्थक ष्टुम् धातु से निष्पन्न हुआ है - स्तोमः स्तवनात् । ऋचा शब्द स्तुत्यर्थक तुदादिगणीय ऋच स्तुतौ धातु से निष्पन्न है— ऋचन्ति स्तुवन्तीति । शुक्ल यजुर्वेद के प्रथम मन्त्र की व्याख्या के अवसर पर महीधर ने ऋचा को स्तुत्यर्थक माना है ।" यजु शब्द यज् धातु से देवपूजा अर्थ में ओणादिक "उ" प्रत्यय करके बना है । निरूक्तकार का वचन है
१. बृहदेवता १७
२. सिद्धांत कौमुदी, मनज्ञाने १२५३ तथा मनुअवबोधने १५६५
३. निरूक्त ७.१२
४. संस्कृतेपंचदेवता स्तोत्राणि, पृ० ४२
५. तत्रैव, पृ० ४२
६. मोनीयर विलियम्स संस्कृत अंग्रेजी डिक्शनरी,
७. निरूक्त ७।१२
निघण्टु ३.१६, ऋग्वेद ६.११.३
८.
९. निरूक्त ७।१२
पृ० ७८५
१०. संस्कृतपंचदेवता स्तोत्राणि, पृ० सं० ४१ ११. शुक्ल यजुर्वेद, प्रथम मन्त्र की महीधर कृत व्याख्या
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