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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
श्रीमद्भागवतकार ने इस अलंकार का प्रयोग अनेक स्थलों पर किया है । दिष्ट्या संसारचक्रेऽस्मिन् वर्तमानः पुनर्भवः । उपलब्धो भवानद्य दुर्लभं प्रियदर्शनम् ॥'
यह भी बड़े आनन्द का विषय है कि आज हम लोगों का मिलना हो गया । अपने प्रेमियों का मिलन भी बड़ा दुर्लभ है। इस संसार का चक्र ही ऐसा है । इसे तो एक प्रकार का पुनर्जन्म ही समझना चाहिए ।
इस श्लोक में यह बड़े आनन्द का विषय है कि हम लोगों का मिलन हो गया "इस विशेष वाक्य का" मित्रों का मिलन दुर्लभ होता है - इस सामान्य वाक्य से समर्थन किया गया है ।
विनोक्ति
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एक के बिना जहां दूसरे के शोभित या अशोभित होने का वर्णन किया जाय वहां विनोक्ति अलंकार माना जाता है । इस अलंकार में यह आवश्यक नहीं है कि "बिना" शब्द का प्रयोग किया ही जाए, पर इतना आवश्यक है कि "बिना " शब्द का अर्थबोध हो ।
यम्बुजाक्षापससार भो भवान् कुरून्मधून् वाथ सुहृद्दिदृक्षया । तत्रान्दकोटिप्रतिमः क्षणो भवेत् रवि विनाक्ष्णोरिव नस्तवाच्युत ॥
द्वारका के लोग भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं - हे कमलनयन ! जब आप अपने बन्धु बान्धवों से मिलने के लिए हस्तिनापुर या मथुर चले जाते हैं, तब आपके बिना हमारा एक-एक क्षण कोटि-कोटि वर्षों के समान लम्बा हो जाता है । आपके बिना हमारी दशा वैसे हो जाती है जैसे सूर्य के बिना आंखों की । यह विनोक्ति अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण है ।
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दीपक
दीपक अलंकार वह है जहां उपमेय और उपमान रूप वस्तुओं के क्रियादि रूप धर्म का एक बार ग्रहण किया जाता है या बहुत सी क्रियाओं के होने पर किसी एक कारक का एक बार ग्रहण किया जाता है। भूतैर्महद्भिर्यं इमाः पुरो विभुः निर्माय शेते यदमूषु पूरुषः । मुङ, क्ते गुणान् षोडश षोडशात्मकः सोऽलंङ कृषीष्ट भगवान् वचांसि मे ॥ भगवान् ही पंचमहाभूतों से इस शरीर का निर्माण करके इनमें जीव
१. श्रीमद्भागवत १०.५.२४
२. मम्मट, काव्यप्रकाश १०.१७१
३. श्रीमद्भागवत १.११.९
४. मम्मट, काव्यप्रकाश १०.१०३ ५. श्रीमद्भागवत २.४.२३
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