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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार
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की स्थापना की तथा लंका का विध्वंस किया। आपके बाणों से कट-कटकर राक्षसों के सिर पृथिवी पर लौट रहे थे।
इस प्रकार कृष्ण को देखकर जाम्बवान् को अपने स्वामी राम की याद आ जाती है । अवश्य ही आप मेरे राम जी हैं जो श्रीकृष्ण के रूप में आये हैं-- यह विश्वास हो जाता है । यह स्मरण अलंकार का सुन्दर उदाहरण
उदाहरण अलंकार
जहां "यथा'' "तथा'' के सम्बन्ध द्वारा औपम्य की विशेषता का वर्णन किया जाता है, उदाहरण अलंकार होता है। श्रीमद्भागवतकार ने इस अलंकार का प्रयोग अनेक स्थलों पर किया है।
यथाचिर्षोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयन्त्यसकत स्वरोचिषः। तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः॥' ।
गजेन्द्र कहता है जैसे धधकती अग्नि से लपटें और प्रकाशमान सूर्य से उनकी किरणें निकलती और लीन होती रहती है, वैसे ही स्वयं प्रकाश परमात्मा से बुद्धि, मन, इन्द्रिय और शरीर जो गुणों के प्रवाह रूप हैं बारबार प्रकट होते हैं तथा लीन होते हैं।
___इस उदाहरण में परमात्मा से उत्पद्यमाना लयमाना सृष्टि की विशेषता का उदाहरण धधकती अग्नि की लपटों से तथा सूर्य के किरणों से दी गई है।
सा देवकी सर्व जगन्निवास निवासभूता नितरां न रेजे। ___ भोजेन्द्र गेहेऽग्निशिखेव रुद्धा सरस्वती ज्ञान खले यथा सती ॥
भगवान् सारे जगत् के निवास स्थान हैं । देवकी उनका भी निवास स्थान बन गयी । परन्तु घड़े आदि के भीतर बंद किए हुए दीपक का और अपनी विद्या दूसरे को न देने वाले ज्ञानखल की श्रेष्ठ विद्या का प्रकाश जैसे चारों ओर नहीं फैलता वैसे ही कंस के कारागर में बंद देवकी की उतनी शोभा नहीं हुई। इस उदाहरण अलंकार में जगन्निवास भगवान् का निवास भूत कंस कारागार में बंद देवकी का उदाहरण घड़े आदि के बंद दीपक और ज्ञानखल की विद्या से दिया गया है। अर्थान्तरन्यास
जहां सामान्य का विशेष से, विशेष का सामान्य से साधर्म्य या वैधर्म्य भाव समर्थित किया जाये वहा अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।' १. श्रीमद्भागवत ८.३.२३ २. तत्रैव १०.२.१९ ३. मम्मट, काव्य प्रकाश १०,१०९
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