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अठारह
जन्मान्तर लगी रहें-यही मेरी कामना है।
गुरु का घर अपना घर होता है-ऐसा किसी ने सुना होगा--- लेकिन मुझे प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य मिला। अम्मा की ममता, स्नेह से मुझे ऐसा लगा कि उन्हीं के गर्भ से उत्पन्न पुत्रों में से सर्वप्रथम मैं ही हूं। ऐसे लोग इस स्वार्थी संसार में विरले ही होते हैं। एक अबोध सद्यःजन्मा शिशु की तरह अम्मा ने मुझे शीतल छाया प्रदान की। हे प्रभो ! यदि मैंने कुछ पुण्यकार्य किया हो तो जन्म-जन्मान्तर अम्मा की शीतल छाया प्रदान करना।
गुरु पुत्र तीनों भाइयों-राजीव, संजीव और आनन्द एवं तीनों बहनों का आशीष एवं मंगलकामनाएं काम आई । आनन्द के प्रति कोई शब्द उसके महनीय व्यक्तित्व एवं अखण्ड-सहोदरत्व को अंकित नहीं कर सकता। उसने सिर्फ मुझे ही देखा। सुजाता दीदी के आशीष एवं कविता, जया तथा अनुजवधू ज्योति की मंगलकामनाएं भागवत-यात्रा में सहयोगिनी बनी। जीजाजी श्री नवनीत कुमार एवं उनके माता-पिता का प्रभूत सहयोग रहा।
योगनिष्ठ, अध्यात्म-गुरु डॉ० लक्ष्मीनारायण चौबेजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन में शब्द असमर्थ हैं। आज जो कुछ भी हूं उसी महामनीषि की देन है। वे मेरे चतुयूंह गुरु परम्परा में प्रतिष्ठित बीज-गुरु हैं। भैया भी हैं। जब भी मैं कलियुग का मार खाकर गिरा तो उठाया, सबल बनाया और गन्तव्य तक जाने के लिए उत्साह भी भर दिया।
साहित्य मर्मज्ञ डॉ० मारुतिनन्दन पाठकजी प्राध्यापक (संस्कृत विभाग मगध विश्वविद्यालय) शत-शत नमनीय हैं । गुरु और पितृव्य के कर्तव्य का एक साथ निर्वाह किया। इनका अमल प्रेम और आशीर्वाद ही इस शोध यज्ञ में सहायक रहा । सत्यद्रष्टा ऋषि की तरह इन्होंने मेरे प्रति जो कुछ निर्दिष्ट किया वह महाय॑ है।
बनारस हिन्दू-विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य गुरुवर्य डॉ० वीरेन्द्र कुमार वर्मा एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य डॉ० गुरुदेव व्रजमोहन चतुर्वेदी का पूर्ण आशीर्वाद मिला । शोधपरीक्षक के रूप में दोनों महान मनीषियों के प्रदत्त सुझाव एवं निर्देश अधिक सहायक हुए।
जन्मदातृ माता-पिता के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं जिसने जन्म दिया, पालन पोषण किया और वंश परंपरागत विद्या को मेरे संस्कार में अधिष्ठित किया । पूज्य पिता डॉ. शिवदत्त पाण्डेयजी का विविध विद्याओं का ज्ञान, उनकी प्रतिभा और विवेचन शैली की इस शोध प्रबन्ध की पूर्णता में मुख्य भूमिका रही। पूज्य चाचाजी श्री शिवपूजन पाण्डेय के प्रति मेरा रोम-रोम ऋणी है जिनकी अनाविल मानसिकता ने मुझे विद्या
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