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सतरह
चरण - नख के दर्शन से कुछ और हो जाता है । बस, यही होता रहे, इसी की
कामना ।
मैं इन तीनों महापुरुषों के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति अर्पित करता । इन्होंने मेरा वरण किया और अपने स्वरूप को मेरे समक्ष विवृणित किया । आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं का हूं और मेरी कामना है कि मैं सदैव उन्हीं का बना रहूं और अपने जीवन को धन्य करूं । सम्पूर्ण चारित्रात्मक वर्ग मान्य साधु-साध्वी एवं समण समणी का प्रभूत आशीर्वाद मुझे मिला । विद्या - गुरु भी मिले। मंगल साधक प्राकृत-विद्या गुरु के प्रति शत-शत प्रणति । इनमें चिदम्बरा - चिन्मयी रूप भी देखा - उस शाश्वत सत्ता को प्रणाम ।
विश्व प्रसिद्ध विद्वान् डा० नथमल टाटिया ( दादा गुरु ) एवं दादीमाता का परमस्नेह और आशीर्वाद इस कार्य में सहायक रहा ।
मेरे शोध निर्देशक विविधविद्याओं में निष्णात, संस्कृत - प्राकृत-पालि के डॉ० राय अश्विनी कुमार, पारदृश्वा पण्डित मान्यमनीषी गुरुवर प्राध्यापक एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग मगध विश्वविद्यालय, बोधगया का ध्यान आते ही मन, वचन काय और सर्वेन्द्रिय अपने बाह्य व्यापार को त्यागकर उन्हीं के पादपंकजों में स्थित हो जाना चाहती हैं । सचमुच यह धरती, यह भारत माता ऐसे ही सपूतों के कारण आज इस घोर कलिकाल में स्थिर है । गुरु, पिता, माता, भाई और मित्र आदि पांचों रूप इस देव में मैंने एक साथ पाया । जब मेरी नींद खुली तो प्रथम दर्शन इसी महामनीषी के हुए । यहीं नहीं जब पता किया तो जागरण देने वाले भी यही युगकल्प थे जब-जब गिरा तब-तब इन्हीं के बाहुबल पर उठा, जब दिग्मूढ हुआ तब इन्होंने राह दिखला दी, संसारानल में जब जलने लगा तो इनके हृदय से शीततोया-प्रेम-सलिला फूट पड़ी, जब इस रेगिस्तानी भूमि में अपने को कमजोर पाया तो इन्होंने अपने गोद में उठाकर पुत्र से भी आगे स्थान दिया । जब मेरा संसार हिलने लगा तो इन्होंने शेष की तरह उसे धारण किया। जब-जब विपत्ति की घोर समुद्र में गिरा तभी इनका असली रूप पाया । इन्होंने इस अबोध को विबोधित किया, चलना सीखलाया, राह दिखलायी और दिखला दी अनन्त - ज्ञानाम्बुधि को । जिसने निस्वार्थ भाव से सूर्य की तरह मेरे जीवन पथ को आलोकित किया, चन्द्रमा की तरह संसारानल में दग्ध को शीतलता प्रदान की, गंगा की तरह पापों का प्रशमन किया, अनन्त विस्तृत आकाश की तरह अपनी छाया में शरण दिया, मूर्तिकार की तरह अश्माखण्ड को तराशकर मूर्ति का रूप दिया तथा अन्त में सृष्टिकर्त्ता की तरह निर्जीव मूर्ति में प्राण बनाया । मेरा मन वृत्तियां आदि सब कुछ इस महाप्रभु के
डालकर जीवन्त चरण में जन्म
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