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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
जो सबमें व्यापक है वह विष्णु है । परात्पर सत्ता सर्वव्यापक होने के कारण विष्णु कही जाती है । आप परमपिता परमेश्वर सर्वव्यापक होने के कारण सभी प्राणियों में निवास करते हैं । वृहत् होने के कारण विष्णु कहलाते हैं ।
श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों में अनेक स्थलों पर विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है । अनेकों स्तुतियां विभिन्न भक्तों द्वारा भगवान् विष्णु के प्रति समर्पित की गई हैं। यहां पर विष्णु और श्रीकृष्ण में एकता का प्रतिपादन किया गया है । जो विष्णु हैं वही श्रीकृष्ण और जो श्रीकृष्ण हैं वही विष्णु हैं । अव्यक्त, कारणस्वरूप, ब्रह्म, ज्योतिस्वरूप, गुण-विकार विशेषणादि से रहित स्वयं विष्णु ही श्रीकृष्ण हैं । '
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विष्णु का यज्ञ से सम्बन्ध प्रतिपादित किया गया है। ये स्वयं यज्ञ स्वरूप हैं । "यज्ञो वै विष्णु: "", "विष्णुर्वेयज्ञ: "", "यो वै विष्णुः स यज्ञः " " वासुदेवपरामखाः ' " नारायणपरामखाः "नारायणपरा यज्ञा: आदि श्रुतिवचन भगवान् विष्णु के यज्ञरूपता को प्रतिपादित करते हैं । धर्म प्रवृत्ति के प्रयोजक एवं वेदत्रयी से प्रतिपादित यज्ञ ही भगवान् का स्वरूप है ।" आप साक्षात् यज्ञ पुरुष एवं यज्ञ रक्षक हैं। अग्निहोत्र, दर्श, पौर्णमास, चातुर्मास्य और पशुसोम ये पांच प्रकार के यज्ञ आपके ही स्वरूप हैं तथा मन्त्रों द्वारा आपका ही पूजन होता है । "
भगवान् विष्णु जीवों के परमाश्रय हैं । संसारानल से संतप्त जीवों के शरण्य हैं । निष्काम भाव से जो भजन करते हैं उनके आप रक्षक हैं । जैसे गाय बछड़े को व्याघ्रादि के भय से बचाती है वैसे ही संसारभय से आप जीवों का त्राण करते हैं ।" आप अपने शरणागत भक्तों के सुहृद आत्मा
१. ऐतरेय ब्राह्मण १.१५ २. कृष्ण यजुर्वेद ३.५.२,
१.२.५.४०
३. ऐतरेय ब्राह्मण १. १५
४. शतपथ ब्राह्मण ५.२३.६
५. श्रीमद्भागवत १.२.२८
६. तत्रैव २.५.१५
८. श्रीमद्भागवत ४.७.२७
९. तत्रैव ४७.४१
१०. तत्रैव ४.९.१७
शतपथ
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७. पद्मपुराण उत्तर खण्ड ८०.९२, ब्रह्मपुराण ६०.२६, मत्स्यपुराण
२४६.३६
१.१.२.१३, तैत्तिरीय ब्राह्मण
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