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________________ दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां श्रेष्ठ मायावी हैं। इनकी माया का कोई पार नहीं पा सकता ।' ११. विष्णु से एकात्मकता अव्यक्त, स्वयंज्योति, गुण-विकार रहित, विशेषण रहित अनिवर्चनीय निष्क्रिय, विशुद्ध सत्ता मात्र भगवान् विष्णु ही श्रीकृष्ण हैं। आप ही अविनाशी पुरुषोत्तम नारायण हैं जिनके नाभिकमल से ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ था। आप प्रकृति पुरुष के नियामक साक्षात् परमेश्वर हैं। आप गुणों के आश्रय, इन्द्रियगोचर एवं "शेष' संज्ञक हैं । १२. भक्तों के परम साध्य ____ श्रीमदभागवत में यद्यपि अनेक विषयों का विस्तत विवेचन उपलब्ध है परन्तु सबका आश्रय (लक्ष्य) भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं। स्वर्गराज्य, महेन्द्र का आधिपत्य, अमरत्व, चतुर्विधमोक्ष का परित्याग कर भगवान् के चरण की ही कामना करते हैं।" सब कुछ त्याग कर प्रेमी भक्त अपने परम आश्रय में चला जाता है। भक्त बार-बार विपत्तियों की ही याचना करते हैं जिससे कि भगवान् का दर्शन हो सके, क्योंकि विपत्तियों में प्रभु अवश्य आते हैं। १३. परमज्ञानी भागवतकार की दष्टि में श्रीकृष्ण परम ज्ञानी हैं। विविध प्रकार के ज्ञान-विज्ञान उन्हीं में अनायास रूपेण रमण करते हैं। सारे ज्ञानस्रोतों का उद्गम स्थल प्रभु ही हैं। इस प्रकार स्तुतियों में भगवान के सम्पूर्ण रूप का उद्घाटन हुआ है । आप सर्वव्यापक निरंजन, अकिंचन, सर्वेश्वर, सर्वभूताधिवास, जगत्पति, मायापति, शरणागत वत्सल, दुष्टनिहन्ता, यज्ञरक्षक, वीरयोद्धा, गो-विप्रऋषि-सेवक, धर्म प्रतिष्ठापक, अधर्मविनाशिक, आदि हैं। विष्ण _ 'विष्ल व्याप्ती' एवं 'विश् प्रवेशने' धातु से विष्णु शब्द की निष्पत्ति होती है, जिसका अर्थ है व्यापक होना । 'वेवेष्टि व्याप्नोति इति विष्णु' १. श्रीमद्भागवत १०.७०.३७ २. तत्रैव १०.३.२४ ३. तत्रैव १०.४०.१ ४. तत्रैव १०.८५.३ ५. तत्रैव १०.१६.३७ ६. तत्रैव १०.२९.३१ ७. तत्रैव १.८.२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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