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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
पड़ते ही भस्म हो गया तब भगवान् श्रीकृष्ण ने उस निद्रा रहित परम भक्त मुचुकुन्द को अपना दर्शन दिया । उन्हें त्रिलोकपति जानकर मुचुकुन्द विविध प्रकार से श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे । भक्तराज मुचुकुन्द सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुण से सम्बन्ध रखने वाली समस्त कामनाओं को छोड़कर चित्स्वरूप भगवान का चरण शरण ग्रहण करता है । हे प्रभो ! आप शरणापन्न की रक्षा कीजिए
शरणद समुपेतस्त्वत्पदाब्जं परात्मन्नभयमृतमशोकं पाहि माऽऽपन्नमीश ।'
पूर्व विश्लेषित स्तुतियों के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में अनेक स्तुतियां हैं यथा- - कौरवगणकृत बलराम स्तुति (१०१६८) जाम्बवान् कृत कृष्ण स्तुति (१०/५६ ) नारदकृत श्रीकृष्ण स्तुति (१०/६९ एवं ७० ) पांडवगणकृत स्तुति ( १०1८३) पृथिवीकृत स्तुति ( १०/५९) महेश्वरकृत स्तुति (१०:६३) मुनिगणकृत स्तुति (१०।८४ ) यमुनाकृत बलराम स्तुति (१०।६५) राजागणकृत कृष्ण स्तुति (१०1७० एवं ७३ ) राजनृग कृत स्तुति (१०/६४) राजा बहुलाश्व कृत स्तुति (१०।८६) वेदकृत कृष्णस्तुति ( १०1८७) श्रुतदेवकृत स्तुति (१०/८६ ) आदि ।
एकादश स्कंध में समाहित स्तुतियां
श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध में चार स्तुतियां हैं। प्रथम स्तुति चतुर्थ अध्याय में निहित है । जब नर-नारायण ऋषि बदरिकाश्रम में तपस्या कर रहे थे तो इन्द्र ने पदच्युति के भय से उनके तप भंग के लिए कामादिकों को भेजा । भगवान् नर-नारायण थोड़ा भी विचलित नहीं हुए । कामादिक भगवान् से अत्यधिक डर गए थे लेकिन प्रभु ने उन सबों को अभयदान दिया । इस प्रकार अभय प्राप्त कर कामादि देव भगवान् नर-नारायण की स्तुति करने लगे । प्रभो ! आप निर्विकार हैं। बड़े-बड़े आत्माराम एवं धीर पुरुष आपके चरण कमलों को प्रणाम करते हैं । आपके भक्त आपकी भक्ति के प्रभाव से अमरावती का भी उल्लंघन कर आपके परमपद को प्राप्त होते हैं । नवें योगीश्वर करभाजन राजा निमि के प्रश्नों के समाधान के क्रम में द्वापर युग में लोगों द्वारा कृत भगवान् कृष्ण एवं संकर्षण स्तुति का उल्लेख करते हैं । द्वापर युगीन मनुष्य इस प्रकार प्रभु की स्तुति करते हैं- हे ज्ञान स्वरूप भगवान् वासुदेव एवं क्रियाशक्ति रूप संकर्षण ! हम आपको बार-बार नमस्कार करते हैं । भगवान् प्रद्युम्न और अनिरुद्ध रूप में आपको नमस्कार करते हैं ।
१. श्रीमद्भागवत १०१५१।४६-५८
२. तत्रैव १०।५११५८
३. तत्रैव ११।४।९-११ ४. तत्रैव ११।४।१०
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