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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन रूप स्वभाव वाली और गृहस्थ धर्म के पालन करने में सहायक शीलवती कन्या से विवाह करने के लिए आपके चरण कमलों की शरण में आया है। और अन्त में ऋषिकर्दम भगवान के सृष्टिकर्तृत्व गुण का प्रतिपादन करते हुए नमस्कार करते हैं --- तं त्वानुभूत्योपरतक्रियार्थ स्वमायया वतितलोकतंत्रम् । नमाम्यभीक्ष्णं नमनीयपादं सरोजमल्पीयसि कामवर्षम् ।' माता देवहति तृतीय स्कन्ध में भगवान् कपिल की दो बार स्तुति करती है । प्रथम बार, सांसारिक भोगों मे उबकर तथा मुक्ति की अभिलाषा लेकर भगवान् कपिल के शरणापन्न होती है । हे प्रभो! आप अपने भक्तों के संसार रूप वृक्ष के कुठार के समान हैं । मैं प्रकृति और पुरुष का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से आप शरणागत वत्सल के शरण में आई हूं । आप भागवत धर्म जानने वालों में सर्वश्रेष्ठ हैं, मैं आपको प्रणाम करती हूं।' द्वितीय बार जब भगबान कपिल सांख्य का उपदेश देकर माता देवहूति का मोह भंग करते हैं तो वह माया से उपरत हो उपकृत होकर प्रभु की स्तुति करती है। प्रभो ! ब्रह्माजी आपहीं के नाभिकमल से प्रकट हुए थे। उन्होंने प्रलयकालीन जल में शयन करने वाले आपके पंचमहाभूत, इन्द्रिय, शब्दादि विषय और मनोमय विग्रह का, जो सत्त्वादि गुणों के प्रवाह से युक्त, सत्स्वरूप और कार्य एवं कारण दोनों का बीज है, ध्यान किया था। आप निष्क्रिय, सत्यसंकल्प, संपूर्ण जीवों के प्रभु तथा सहस्रों अचिन्त्य शक्तियों से सम्पन्न हैं। अपनी शक्ति को गुण प्रवाह रूप में ब्रह्मादि अनंत मूर्तियों में विभक्त करके उनके द्वारा आप स्वयं ही विश्व की रचना आदि कार्य करते हैं। नाथ ! यह कैसी विचित्र बात है, जिनके उदर में प्रलयकाल आने पर यह सारा प्रपंच लीन हो जाता है, और जो कल्पांत में मायामय बालक का रूप धारण कर अपने चरण का अंगूठा चुसते हुए अकेले ही वटवृक्ष के पत्ते पर शयन करते हैं, उन्हीं आपको मैंने गर्भ में धारण किया। स्तुति के ७ वें श्लोक में नामकीर्तन की महिमा का प्रतिपादन देवहूति करती है --हे प्रभो ! आपके नाम कीर्तन से चाण्डाल भी पवित्र हो जाता है अहो बत श्वपचोऽतो गरीयान् यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम् । तेपुस्तप स्ते जुहुवु, सस्नुरार्या ब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये ते ॥ १. श्रीमद्भागवत ३.२१.२१ २. तत्रैव ३।२४।११ ३. तत्रैव ३३३३३२ ४. तत्रैव ३।३३।२-४ ५. तत्रैव ३।३३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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