SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९७ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण ___ सप्तधातुमय स्थूल शरीर में बंधा हुआ, माता के गर्भ में स्थित, देहात्मदर्शी जीव भावि सांसारिक कष्ट से अत्यन्त भयभीत होकर निर्गुण निर्विकार परम ब्रह्म परमेश्वर की स्तुति करता है।' यह स्तुति आर्त स्तुति है । श्री विष्णु भगवान् के चरणों को अपने हृदय में स्थापित करने से मनुष्य सद्यः भवसागर से मुक्त हो जाता है । घबराया हुआ जीव इस प्रकार प्रभु की उपासना करता है सोऽहं व्रजामि शरणं ह्यकुतोभ्यं मे येनेदृशी गतिरदWसतोऽनुरूपा ।' _ मैं वस्तुत: शरीरादि से रहित होने पर भी देखने में पांच भौतिक शरीर से सम्बद्ध हूं। इसीलिए इन्द्रिय, गुण, शब्दादि विषय और चिदाभास रूप जान पड़ता हूं। अत: शरीरादि के आवरण से जिनकी महिमा कुण्ठित नहीं हुई है. उन प्रकृति और पुरुष के नियंता सर्वज्ञ पुरुष की मैं वंदना करता हूं। माया से अपने स्वरूप की स्मृति नष्ट हो जाने के कारण यह जीव अनेक सत्वादि गुण और कर्म के बंधन से युक्त इस संसार मार्ग में तरह-तरह के कष्ट झेलता हुआ भटकता रहता है, अत: उन परम पुरुष परमात्मा के कृपा के बिना और किस युक्ति से अपने इस स्वरूप का ज्ञान हो सकता है। और अन्त में जीव संपूर्ण बन्धनों के उच्छेदक विष्णु के चरण कमलों को हृदय में स्थापित करना चाहता है -... तस्मादहं विगतविक्लव उद्धरिष्य आत्मानमाशु तमसः सुहृदाऽऽत्मनैव । भूयो यथा व्यसनमेतदनेकरन्ध्र मा मे भविष्यदुपसादितविष्णुपादः ।। यह स्तुति सेश्वर सांख्य के धरातल पर अवस्थित है। भक्त जीव स्तुति काल में सर्वज्ञ की अवस्था में है, अनागत संसार बंधन जन्य कष्टों से घबराकर उस प्रभु के चरण-शरण ग्रहण करता है, जिसने उसे इस बंधन में डाला है। चतर्थ स्कन्ध की स्तुतियां__चतुर्थ स्कन्ध में लगभग २५ स्तुतियां समाहित हैं। इनमें सबसे अधिक १९ स्तुतियां दक्ष-यज्ञ की पूर्णता पर उपस्थित भगवान् विष्णु के प्रति विभिन्न भक्तों द्वारा समर्पित की गई हैं। प्रथम अध्याय में अत्रि ऋषि कृत त्रिदेव स्तुति एवं देवगण कृत नर-नारायण स्तुति है ।' सृष्टि-संवर्द्धन की कामना से ऋषि अत्रि परमेश्वर की उपासना करते हैं । फलस्वरूप तीनों देव १. श्रीमद्भागवत ३।३१।१२-२१ २. तत्रैव ३।३१।१२ ३. तत्र व ३।३१।१४-१५ ४. तत्रैव ३।३१।२१ ५. तत्रैव- क्रमशः--४।१।२७-२८ एवं ४११।५६-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy