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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन रहते हैं । नाथ ! कृपा करके मुझ याचक की यह मांग पूरी कीजिए जिससे मैं आपके सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपों को जान सकें । आप माया के स्वामी हैं । आपका संकल्प कभी व्यर्थ नहीं जाता। आप मुझ पर कृपा कीजिए कि मैं सजग रहकर सावधानी से आपकी आज्ञा का पालन कर सकू । प्रभो ! आपने एक मित्र के समान हाथ पकड़कर मुझे अपना मित्र स्वीकार किया है । अतः मैं जब आपकी इस सेवा-सृष्टि रचना में लगू और सावधानी से पूर्वसृष्टि के गुण-कर्मानुसार गुणों का विभाजन करने लगू, तब कहीं अपने को जन्म कर्म से स्वतन्त्र मानकर अभिमान न कर बैठू ।' तृतीय स्कन्ध को स्तुतियां श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध में विभिन्न भक्तों द्वारा विभिन्न अवसरों पर स्तुतियां की गई हैं। सृष्टि विस्तार की कामना से ब्रह्मा परमब्रह्मपरमेश्वर की (३।९।१-२५), वाराह द्वारा पृथिवी का उद्धार किए जाने पर मरीच्यादि ऋषिगण भगवान् वाराह की (३।१३।३४-४५) स्तुति करते हैं। एकादश श्लोकात्मक इस स्तुति में भगवान् वाराह के भयंकर स्वरूप का निरूपण किया गया है। हिरण्याक्ष का वधकर पृथिवी का उधार किए जाने पर देवगण और ऋषिगण भगवान् की इस प्रकार स्तुति करते हैं-भगवान् अजित ! आपकी जय हो, जय हो। यज्ञपते ! आप अपने वेदत्रयी रूप को फटकार रहे हैं, आपको नमस्कार है। आपके रोम-कूपो में सम्पूर्ण यज्ञ लीन है। पृथिवी का उद्धार करने के लिए सूकर रूप धारण करने वाले आपको नमस्कार है । ईश ! आपकी थूथनी में स्रक है, नासिका छिद्रों में युवा है, उदर में ईडा है, कानों में चमस है, मुख में प्राशिव है और कण्ठछिद्र में सोमपात्र है। भगवन् ! आपका जो चबाना होता है वहीं अग्निहोत्र है । हे प्रभो आप ही इस धरती के उद्धारक हैं-- कः श्रद्धधीतान्यतमस्तव प्रभो रसां गताया भुव उद्विबहणम् । नविस्मयोऽसौ त्वयि विश्वविस्मये यो माययेदं ससृजेऽतिवस्मयम् ॥ १५ वें अध्याय में देवगण ब्रह्मा की स्तुति करते हैं। यह आर्त स्तुति है। दिति अनिष्ट की आशंका से कश्यप जी के वीर्य को अनन्त काल तक गर्भ में धारण किए रही। उस गर्भस्थ तेज से सम्पूर्ण लोकपालादि तेजहीन हो गये । सारा संसार अंधकार में फंस गया तब घबराकर देवगण लोकसर्जक ब्रह्मा के पास जाकर उनकी स्तुति करने लगे। देवाधिदेव ! आप जगत् के १. श्रीमद्भागवत २।९।२९ २. तत्रैव ३।१३।३६ ३. तत्रैव ३।१३।४३ ४. तत्रैव ३॥१५॥३-१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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