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भागवत की स्तुतियां स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण
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भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति मेरा शरीर, अन्तःकरण और आत्मा समर्पित हो जाय । '
द्वितीय स्कन्ध
श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध में दो स्तुतियां उपन्यस्त हैंशुकदेवकृत भगवत्स्तुति और ब्रह्माकृत भगवत्स्तुति । द्वितीय स्कन्ध चतुर्थ अध्याय में परीक्षित् द्वारा श्रीकृष्ण के गुणविषयिणी जिज्ञासा समुपस्थित होने पर श्रीशुकदेव महाराज भगवान् श्रीकृष्ण की गुणात्मक स्तुति करते हैं । " १३ श्लोकों में शुकदेव गोस्वामी के इस स्तुति में श्रीकृष्ण को पमात्मा एवं तीनों लोकों का स्वामी के रूप में प्रतिपादन किया है । ज्ञानियों में श्रेष्ठ अवधुत शिरोमणि शुक द्वारा यह स्तुति निष्काम भाव से की गई है ।
स्तुति करते हुए शुकदेव जी कहते हैं- जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय की लीला करने के लिए सत्त्व रज और तमोगुण रूप तीन शक्तियों को स्वीकार कर ब्रह्मा विष्णु और शंकर का रूप धारण करते हैं । जो सर्वव्यापक और अतीद्रिन्य हैं उन पुरुषोत्तम भगवान् के चरण कमलों में कोटि-कोटि प्रणाम है। जिनका कीर्तन, स्मरण, दर्शन, वन्दन, श्रवण और पूजन जीवों के पापों को तत्काल नष्ट कर देते हैं, उन पुण्यकीर्ति भगवान् को बार-बार नमस्कार है
यत्कीर्तनं यत्स्मरणं यदीक्षणं यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्हणम् । लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ॥
यह स्तुति पूर्णतः नमस्कारात्मक है । अधिकांश श्लोकों में " नम" शब्द का प्रयोग हुआ है ।
ब्रह्माकृत भगवत्स्तुति
जब ब्रह्मा सृष्टि कार्य में असमर्थ थे। तब अव्यक्त प्रभु की प्रेरणा से तपस्या कार्य में संलग्न हुए । तपस्या से प्रसन्न होकर लोकभावन परात्पर प्रभु प्रकट हुए और ब्रह्मा को आशीर्वाद देकर सृष्टि करने की शक्ति प्रदान की । सर्वव्यापी प्रभु को सामने समुपस्थित देखकर ब्रह्मा सृष्टि विषयक कामना से प्रेरित होकर उनकी स्तुति करते हैं ।" ब्रह्मा जी कहते हैंभगवन् ! आप समस्त प्राणियों के अन्तःकरण में साक्षी रूप से विद्यमान
१. श्रीमदभागवत १.९.३४
२. तत्रैव २४ एवं २ ९
३. तत्रैव २।४।१२ -२४
४. तत्रैव २.४.१५
५. तत्रैव २।९।२४-२९
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