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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन (ख) मनुष्य योनि में उत्पन्न भक्तों द्वारा की गई स्तुतियां
__उत्तरा, अर्जुन, कुन्ती, भीष्म, पृथु, अम्बरीष, उद्धव, कौरवगण, गोपीगण, देवकी-वसुदेव, राजागण, राजानग आदि भक्तों द्वारा की गई -स्तुतियां इस कोटी के अन्तर्गत आती हैं। (ग) प्रकृति जगत् से सम्बद्ध भक्तों द्वारा की गई स्तुतियां
बहुत से प्राकृतिक पदार्थ यथा - नदी, वनस्पति, नक्षत्र, ग्रह आदि भी विभिन्न अवसरों पर अपने उपास्य की स्तुति करते हैं। इस कोटि के अन्तर्गत अग्निकृत (४७) विष्णुस्तुति, हंस पतंगादि चतुवर्णकृत सूर्य स्तुति (५।२०), गजेन्द्रकृत भगवत्स्तुति (८।३) नागगण कृत नृसिंह स्तुति (१८) नागपत्नी कृत श्रीकृष्ण स्तुति (१०।१६) पृथ्वीकृत पृथ स्तुति (१०।५९), यमुनाकृत बलराम स्तुति (१०१६५) एवं सुरभिकृत कृष्ण स्तुति (१०।२) आदि प्रमुख हैं। भौमासुर के बध के बाद उसके पुत्र भगदन्त की रक्षा के लिए सर्वसहा पृथिवी भगवान् श्रीकृष्ण की इस प्रकार स्तुति करती है
नमस्ते देवदेदेश शङखचक्रगदाधरः।।
भक्तेच्छोपात्तरूपाय परमात्मन् नमोऽस्तु ते ॥
बलराम के क्रोध से डरकर यमुना उनकी स्तुति करती है-लोकाभिराम बलराम महाबाहो ! मैं आपका पराक्रम भूल गई थी। जगत्पति ! अब मैं जान गयी कि आपके अंशभूत शेष जी इस सारे जगत् को धारण करते हैं। प्रमादवश किए गए मेरे अपराधों को हे भक्त वत्सल ! क्षमा कीजिए, मुझे छोड़ दीजिए।' श्रीमद्भागवत में ज्वर स्तुति (१०१६३) अत्यन्त प्रसिद्ध है। वैष्णव ज्वर के तेज से डरकर माहेश्वर ज्वर प्रभु श्रीकृष्ण की स्तुति करता है :
नमामि त्वानन्तशक्तिं परेशं सर्वात्मानं केवलं ज्ञप्ति मात्रम् । विश्वोत्पत्तिस्थानसंरोधहेतुं यत्तद् ब्रह्म ब्रह्मलिङ्ग प्रशान्तम् ॥
भगवान् श्रीकृष्ण कालियनाग का जब दमन कर रहे थे तब नागपत्नियों ने अपने पति की रक्षा के लिए शरणागतवत्सल भगवान् की स्तुति की। प्रभो आपका यह अवतार ही दुष्टों को दण्ड देने वाला है, इसलिए इस अपराधी को दण्ड देना सर्वथा उचित है । आपकी दृष्टि में शत्रु और पुत्र का कोई भेद-भाव नहीं है । इसलिए जो अपराधी को आप दण्ड देते हैं, वह उसके पापों का प्रायश्चित्त कराने और उसका परम कल्याण करने के लिए
१. श्रीमद्भागवत १०१५९।२५ २. तत्रैव १०६६।२६-२७ ३. तत्रैव १०।६३२५ ४. तत्रैव १०।१६।३३
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