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________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण नाद्य नो दर्शनं प्राप्तः परं परमपूरुषः । यौदं शक्तिभिः सृष्ट्वा प्रविष्टोह्यात्मसत्तया ।। यथा शयानः पुरुषो मनसैवात्ममायया । सृष्ट्वा लोकं परं स्वाप्नमनुविश्यावभासते ।।' (अ) निम्नकुलोत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां बहुत से निम्नकुलोत्पन्न भक्त भगवान् के चरणों में अपने आप को समर्पित कर देते हैं । विदुर, सुदामा माली आदि भगवान् की स्तुति करते हैं । वह माली आज प्रभु का दर्शन कर धन्य धन्य हो गया। प्रभु से निवेदित करता है-प्रभो आपके शुभागमन से हमारा जन्म सफल हो गया, कुल पवित्र हो गया। आज हम पितर, ऋषि एवं देव ऋण से मुक्त हो गये। और फिर आगे भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम की स्तुति करता है. भवन्तौ किल विश्वस्य जगतः कारणं परम् । अवतीर्णाविहांशेन क्षेमाय च भवाय च ॥ ८. भक्तों की योनि के आधार पर स्तुतियों का वर्गीकरण भक्त किस योनि-विशेष के हैं इस आधार पर स्तुतियों का त्रिविधा वर्गीकरण किया जा सकता है। (क) देवयोनि में उत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां श्रीमद्भागवत में विभिन्न देव अपने अपने उपास्य की स्तुति करते हैं । अग्नि (४७) कृत विष्णु स्तुति, अत्रि (४।१) कृत त्रिदेव स्तुति, इन्द्रकृत कृष्ण (१०।२७), नृसिंह (७।८) एवं विष्णु (४७) स्तुति, देवगण कृत कृष्ण स्तुति (११६) नरनारायण स्तुति (४११) (१११४) भगवत्स्तुति (६।९), वाराह स्तुति (३।१९), विष्णु स्तुति (४७), नारदकृत स्तुतियां, ब्रह्मकृत कृष्णस्तुति, (१०।४), नृसिंह स्तुति (७।८।१०), भगवत्स्तुति (२।९,३१९), एवं ८।५,६, १८) ब्रह्माशिवादिकृत भगवत्स्तुति (१०।२), रुद्र कृत नृसिंह स्तुति (७।८). वरुणकृत कृष्ण स्तुति (१०।२८), शब्दब्रह्मकृत विष्णुस्तुति (४७) शिवकृत भगवत्स्तुति (५।१७) आदि प्रमुख हैं। जब भगवान् लोक कल्याणार्थ, धर्मरक्षणार्थ देवकी के गर्भ में आते हैं तो सभी देवता, ऋषि, कंश के कारागार में जाकर गर्भस्थ प्रभु की स्तुति करते हैं। १. श्रीमद्भागवत १०८६१४४-४५ २. तत्रैव १०१४११४५ ३. तत्रैव १०४१।४६ ४. तत्रैव १०२।२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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