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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन करते हैं।' ऋषि मार्कण्डेय दो बार स्तुति करते हैं। प्रथम बार (१२।८) भगवान् विष्णु की एवं द्वितीय बार (१२।१०) भगवान शिव की। भगवान् शिव की स्तुति करते हुए ऋषि मार्कण्डेय कहते हैं---
नमः शिवाय शान्ताय सत्त्वाय प्रमृडाय च ।
रजोजुषेऽप्यघोराय नमस्तुभ्यं तमोजुषे ॥ (ख) गार्हस्थ्य भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां
__ श्रीमद्भागवत में बहुत से भक्त गार्हस्थ्य धर्म का अवलम्बन करते हुए प्रभु की उपासना करते हैं। इन गृहस्थ भक्तों में कुछ तो राजकुलोत्पन्न हैं तो कुछ सामान्य कुलोत्पन्न । अतएव गार्हस्थ्य भक्तों द्वारा कृत स्तुतियों को दो कोटियों में रख सकते हैं१. राजकुलोत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां
श्रीमद्भागवतीय राजकुलोत्पन्न भक्त भौतिक भोगों से सर्वथा अलग रहकर भगवान् के चरणों में ही अखण्डरति की कामना करते हैं। भीष्म, अर्जुन, उत्तरा, कुन्ती, परीक्षित्, रन्तिदेव, पृथु नृग, वेन, रहुगण और बहुलाश्वादि भक्त विभिन्न अवसरों पर भगवान् की स्तुति करते हैं । अर्जुन, उत्तरा प्राण संकट उपस्थित होने पर, कुन्ती और नग उपकृत होकर तथा यज्ञशाला में राजा पृथु भगवान् की स्तुति करते हैं । पृथ्वी का सम्राट् बैसा कुछ भी नहीं चाहता जहां भगवान के चरणरज की प्राप्ति न हो सके
न कामये नाथ तदप्यहं क्वचिद् न यत्र युष्मच्चरणाम्बुजासवः।' २. सामान्य कुलोत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां
इस प्रकार की स्तुतियों को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया
(अ) उच्च कुलोत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियां
भागवत में बहुत से उच्चकुलोत्पन्न ब्राह्मण और क्षत्रिय भक्त परम प्रभु भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं । ब्राह्मण कुलोत्पन्न भक्तों द्वारा कृत स्तुतियों में-श्रुतदेव (१०।८६) कृत कृष्ण स्तुति, वृत्रासुर (६।११) कृत विष्णु स्तुति, याज्ञवल्क्य (१२॥६) कृत आदित्य स्तुति एवं कश्यप कृत भगवत्स्तुति प्रधान है । मिथिला के गृहस्थ ब्राह्मण श्रुतदेव भगवान् श्रीकृष्ण की इस प्रकार स्तुति करते हैं--- १. श्रीमद्भागवत ५।२५।१९-१३ २. तत्रैव १२।१०।१७ ३. तत्रैव ४।२०।२४
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