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________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण किम्पुरुष वर्ष में भक्तराज हनुमान भगवानादिपुरुष लक्ष्मणाग्रज राम के चरणों में ही अखंड रति की कामना करते हैं।' प्रह्लाद (७.९), अम्बरीष (९.५), अंशुमान्, बलि, पृथु, नल-कुबर-मणिग्रीव की स्तुतियां दास्य भाव से युक्त हैं । सम्पूर्ण संसार के आधिपत्य, स्वर्ग-सुख, एवं हस्तगत मुक्ति की भी उपेक्षा कर ये भक्त केवल प्रभु के पादपंकज में ही निवास करना चाहते हैं । नलकुबर-मणिग्रीव के उद्गार---- वाणी गुणानुकथने श्रवणं कथायां हस्तौ च कर्मसु मनस्तवपादयोनः । स्मृत्यां शिरस्तव निवास जगत्प्रणामे दृष्टिः सतां दर्श नेऽस्तु भवत्तननाम् ॥ (ग) सख्यभाव प्रधान स्तुतियां कतिपय स्तुतियां उपास्य के प्रति सखा भाव से निवेदित की गई हैं। अक्रूर, सुदामा, उद्धव, सिद्धपाण्डवगण और अर्जुनादि सखा भाव से प्रेरित होकर उनकी स्तुति करते हैं। (घ) प्रेम भाव प्रधान स्तुतियां यही भाव भक्ति साहित्य में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसी भाव में निमज्जित होकर आदत्या गोपियां अपने प्रियतम के चरणों में अनन्यभाव से सब कुछ समर्पित कर देती हैं। पति-भाई, पिता एवं धन-दौलत पर लात मारकर गोप बधुएं प्रभु के चरणों में सर्वतोभावेन उपस्थित हो जाती हैं। एक क्षण भी गोप बालाएं अपने प्रियतम कृष्ण के बिना स्थिति धारण नही कर सकती है। यही भक्ति की सर्वश्रेष्ठ परिभाषा है--तदर्पिताखिलाचारिता तद्विमरणे परम व्याकुलतेति । इस प्रकार की स्तुतियों में भक्त मानापमान, लाभ-हानि, जय-पराजय, सुख-दुःख आदि का विचार न करके, आसक्ति और फल की इच्छा छोड़कर शरीर और संसार में अपने लिए अहंता-ममता रहित होकर एकमात्र परमप्रियतम भगवान् को ही परम आश्रय, परमगतिः परम सुहृद समझकर, अनन्यभाव से, अत्यन्त श्रद्धा के साथ प्रेमपूर्वक निरन्तर तैल धारावत् उनके नाम, गुण, प्रभाव और स्वरूप का चिन्तन करते हुए उन्हीं को सुख पहुंचाने के लिए स्वार्थ से रहित होकर उन्हीं के चरणों में समर्पण कर देते हैं अपने निज का, सर्वात्मना । (ङ) उपकृत होकर की गई स्तुतियां कुछ ऐसी स्तुतियां भी हैं जो प्रभु के द्वारा समय-समय पर किए गये उपकारों से उपकृत होकर की गई है। प्रलयकाल में रक्षा करने के उपकार १. श्रीमद्भागवत ५.१९.८ २. तत्रैव १०.१०.३८ ३. नारद भक्ति सूत्र १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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