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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों की समीक्षात्मक अध्ययन से महाराज मनु मत्स्यावतार की (५।१८) अर्यमा कुर्मावतार की (५।१८) स्तुति करते हैं । कामधेनु (१०।२७) नलकुबरमणिग्रीव (१०.१०) राजागण (१०७३) सुदामा माली (१०।४१) आदि भक्त भगवान् कृष्ण द्वारा उपकृत होकर उनकी स्तुति करते हैं। भगवान् कृष्ण के द्वारा समय-समय पर अपने पुत्रों की रक्षा किए जाने के कारण भक्तिमती कुन्ती उनकी स्तुति करती है। वह केवल विपत्तियों की ही कामना करती है क्योंकि विपत्ति में ही प्रभु के दर्शन होते हैं, जो मुक्ति का हेतु है विपदः सन्तु नः शश्वदत्र तत्र जगदगुरो। भवतो दर्शनं यत् स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥२ । प्रभु के आगमन से सुदामा माली गद्गद् कण्ठ से श्रीकृष्ण-बलराम की स्तुति करता है-प्रभो ! आप दोनों के शुभागमन से हमारा जन्म सफल हो गया। हमारा कुल पबित्र हो गया । आज हम पितर, ऋषि एवं देवताओं के ऋण से मुक्त हो गये । वे हम पर अब परम संतुष्ट हैं।' (च) कामक्रोधादिभाव से युक्त होकर की गई स्तुतियां - कुब्जा, पुतना और हिरण्यकशिपु आदि कामादि से युक्त होकर प्रभु की उपासना करते हैं । श्रीकृष्ण के स्पर्श से रूपवती नवयौवन को प्राप्त कुब्जा कामासक्त हो प्रभु की उपासना करती है। कुब्जा के शब्दों में वीर शिरोमणे ! आइए घर चलें । अब मैं आपको यहां नहीं छोड़ सकती क्योंकि आपने मेरे चित्त को मथ डाला है । पुरुषोत्तम मुझ दासी पर प्रसन्न होइए। (छ) आर्तभाव प्रधान स्तुतियां श्रीमद्भागवत में आर्तभाव प्रधान स्तुतियों की बहलता है। विभिन्न विपत्तियों में फंसने पर, प्राण संकट उपस्थित होने पर भक्त अपने प्रभु से रक्षा की याचना करता है। द्रौण्यास्त्र से भयभीत अर्जुन (११७) और उत्तरा (१८) संसार के भय से त्रस्त जीव (३।३१) राक्षसों से त्रसित देवगण (३।१५), (६।९) ब्रह्मा (८१५) आदि प्रभु की स्तुति करते हैं। ग्राह से विपाटित गजेन्द्र प्राक्तन जन्म के संस्कारवशात् निविशेष प्रभु की उपासना करता है। विमुक्त मुनिगण जिसके पादपंकजों के दर्शन की लालसा रखते हैं वे ही प्रभु मेरे गति हों१. श्रीमद्भागवत ११८।१८-४३ २. तत्रैव १.८.२५ ३. तत्रैव १०.४.४५ ४. तत्रव १०॥४२१० ५. तत्र व ८।३।२-२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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