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देहधारणसामग्री, मीनानां सुलभा न तत्र बाधते कर्म, कि बाधते तदा
अध्याय २ : ४६
५६, मछलियों को अपने शरीर को धारण करने में सहायक सामग्री जल में सुलभ होती है। वहां कोई कर्म किसी को बाधित नहीं करता तो वह मनुष्यों के देह धारण में क्यों बाधक होगा ?
जले । नरान् ॥ ५६ ॥
सर्वेषां च मनुष्याणां सुलभा जीविका भवेत् । औचित्येन व्यवस्थायाः, कर्मवादो न दुष्यति ॥ ६० ॥
६०. उचित व्यवस्था से सभी मनुष्यों को आजीविका सुलभ हो तो इसमें कर्मवाद दूषित नहीं होता ।
दुर्वृत्तायां व्यवस्थायां, लोकः कष्टानि गच्छति । सद्वृत्तायां व्यवस्थायां, लोको हि सुखमृच्छति ॥ ६१ ॥
६१. दुष्प्रवृत्त व्यवस्था में लोग दुःखी होते हैं और सत्प्रवृत्त व्यवस्था में वे सुखी होते हैं ।
सुखदुःखे व्यवस्थाप्ये, नारोप्ये कर्मसु क्वचित् । सुखदुःखे च कर्माप्ये, व्यवस्थायाः शिरस्यपि ॥ ६२ ॥
६२. व्यवस्था से प्राप्त होनेवाले सुख-दुखों को कर्म पर आरोपित नहीं करना चाहिए और कर्म से प्राप्त होनेवाले सुख-दुःखों का भार व्यवस्था के सिर पर नहीं डालना चाहिए ।
प्रतिव्यक्तिविभिन्नास्ति, योग्यता स्वगुणात्मिका । कर्मावरणमात्रायाः, तारतम्यविभेदतः ॥६३॥
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६३. अपनी गुणात्मक योग्यता व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होती है । वह आवारक कर्मों की मात्रा के तारतम्य पर होती है ।
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