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परिशिष्ट-१ : ३६६
बरसात तो थी नहीं, भूखे व्यक्तियों का सपना था। चेतना वहीं मंडरा रही थी।
बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है। वे एक नगर में आये। एक निर्धन किसान की इच्छा हुई कि आज कुछ सुनना है। किन्तु सुबह-सुबह एक बैल घर से निकल गया। बेचारे को खोजने जाना पड़ा। दोपहर में बैल मिला। दिन भर का थकामांदा, भूखा-प्यासा था । सुनने की तीव्र प्यास थी। घर नहीं आया। सीधा बुद्ध के समीप पहुंचा। दर्गन किये और कहा–'कृपया, कुछ मुझे भी उपदेश दें। बुद्ध ने देखा-प्यासा है आदमी, भूखा भी है। बुद्ध ने भिक्षुओं से कहा- इसे पहले भोजन दो।' भोजन कराया और उपदेश दिया। वह निर्धन किसान श्रोतापत्ति को उपलब्ध हो गया, धर्म के मार्ग-बुद्ध के मार्ग को प्राप्त हो गया। धर्म के स्रोत में गिर गया। बुद्ध जानते थे-भूख रोग है। अभी उपदेश सार्थक नहीं होगा। चेतना सुनती नहीं है । चेतना के सुनने का आयाम है-स्वस्थता।
महावीर ने अनशन का उपयोग किया और कहा-भोजन को छोड़कर चेतना को जागृत रखने का प्रयोग भी साधक को करना चाहिए और उनमें होने बाले अनुभवों से भी अपने को प्रशिक्षित करना चाहिए। साधक को यह देखते रहना चाहिए कि भूख कहां है ? किसे हैं ? मैं कौन हूं ? शरीर के साथ जो तादात्म्य हैं उसे तोड़ते रहना चाहिए। मैं शरीर नहीं हूं, चेतन हूं। चेतना पेट के पास दौड़े तब उसे सावधान करे कि –'आज भोजन करना ही नहीं है, तब कैसा चिंतन ? आत्म-जागरण में अपने को व्यस्त रखने का प्रयास करना तथा सूक्ष्म शरीर को प्रकाशित कर चेतना की सन्निधि में पहुंचना ही उपवास का कार्य है।
(२) ऊनोदरी
इसका अर्थ है उदर को पूर्ण नहीं भरना। जैसे उपवास में कठिनाई है वैसे अति-भोजन में भी है। भोजन के अभाव में ध्यान पेट की तरफ रहता है, वैसे अति-भोजन कर लेने पर भी चेतना-ऊर्जा को बिश्रान्ति नहीं मिलती। अब वह भरे हुए पेट के आस-पास पहुंचने में व्यस्त रहने लगती है। उपवास के पूर्व 'कल उपवास करना है इसलिए आज अच्छी तरह खा लो-यह भी स्वस्थ चिंतन नहीं है । यह साधना के लिए अनुकूल नहीं है । साधक यहां पदच्युत हो जाता है। अधिक खा लेने का अर्थ होगा - जब तक भोजन का सात्यीकरण न होगा तब तक ध्यान का प्रवाह चेतना की तरफ प्रवाहित कैसे होगा ? अति भोजन और बिलकुल कष्ट पूर्ण निराहार-दोनों ही स्थितियों में आत्मा का स्वास्थ्य नष्ट होता है।
__ अइमायं न भुजेज्जा, मायण्णे एसणारए'-जैसे आगम सूक्त अनेक स्थलों 'पर साधक को सचेत करते हैं कि अतिमात्रा में भोजन न करे। वह आहार की
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