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३६८ : सम्बोधि
( क्रोध, अहंकार, माया, लोभ) और गौरव (ऋद्धि गौरव, रस गौरव, सुख-गौरव) और इन्द्रियों को कर ।
महावीर ने कहा है ' जायाए घास मेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाये'- साधक रसलोलुप न बने। वह भोजन संयम और चेतना के जागरण के लिए करे । आहार करने का उद्देश्य इससे स्पष्ट होता है । साधक जिस ध्येय के लिए चला है, वह सतत उसकी आंखों के सामने परिदृष्ट रहे । एक क्षण भी ध्येय को विस्मृत न करे । चेतना की विस्मृति अधर्म है और स्मृति धर्म है । चेतना की सुषुप्ति हिंसा है, प्रमाद है, मृत्यु है और उसकी जागृति अहिंसा है, अप्रमाद है, अमृत है । साधक जागृति के लिए जीता है। आहार भी लेता है तो चेतना के जागरण के लिए और छोड़ता है तो भी जागरण के लिए । आहार के छोड़ने से अगर चेतना - जागरण में अवरोध होता है तो वह उसे ग्रहण करता है । आहार के ग्रहण और त्याग का सम्पूर्ण विवेक साधक पर निर्भर है । कैसा आहार करना ? कितना करना ? कब करना ? कब क्यों नहीं करना ? साधक अगर इन प्रश्नों को उपेक्षित करता है तो वह साधना में सफल नहीं हो सकता । बाह्य तप के कुछ भेद इन्हीं संकेतों को प्रस्तुत करते हैं ।
अनशन का अर्थ है - उपवास, आहार आदि का वर्जन । मह उनके लिए है। जिन्हें भोजन को छोड़कर भोजन का चिंतन भी नहीं सताता है । यदि व्यक्ति भोजन की चिता से व्याकुल होते हैं और ध्यान पेट की तरफ चला जाता है तब उपवास सार्थक नहीं होता । उपवास शब्द की ध्वनि भी यही है कि चेतना के के निकट निवास करना । चेतना वहीं आकृष्ट हो जाती है जहां दर्द, पीड़ा या कष्ट है। सिर में दर्द है तो ध्यान सिर पर चला जाता है। पैर में कांटा लगा तो ध्यान उस जगह आ जाता है । यह सबका स्पष्ट अनुभव है। भूख भी पीड़ा है । बुभुक्षित व्यक्ति का ध्यान पेट के आस-पास घूमने लगता है उसे स्वप्न में भी भोजन का दर्शन होता है ।
एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ गांव आ रहा था, मार्ग में निर्जला एकादशी का महान् पर्व आ गया । मन्दिर में कथा सुनने लगा। पंडितजी ने कहा- आज के व्रत का महापुण्य होता है। यह सुन उसने व्रत रख लिया और अपने साथ वाले कुत्ते और बिल्ली को भी व्रत करा दिया। रात को सोये । सब उठे । बिल्ली ने कुत्ते से कहा- - रात को बड़ा अद्भुत स्वप्न आया ।' पूछा - 'क्या ?' बिल्ली ने कहा - 'आकाश बादलों से छाया हुआ था और चूहों की बरसात होरही थी ।' कुत्ते ने कहा - 'पगली ! ऐसा कभी होता है ? स्वप्न तो मुझे भी आया था। मैंने हड्डियों की बरसात देखी ।' मालिक सब सुनकर हंस रहा था। उस कहा - 'तुम दोनों ही नासमझ हो । न आकाश से चूहे बरसते हैं और न हड्डियां । स्वप्न मेरा सच था । मैंने देखा आकाश से भोजन की बरसात हो रही थी ।'
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