SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १ : ६ कारण है— कार्मण शरीर जो आत्मा के साथ अनादिकालीन है । क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, राग, द्वेष, मोह, लोभ आदि समस्त वृत्तियों का वह मूल- केन्द्र है । साधक उसे पकड़ता है और उससे मुक्त होने की दिशा में प्रयत्नशील होता है । भगवान् कुशल चिकित्सक थे। उनकी दृष्टि में शारीरिक और मानसिक दुःख की जड़ आध्यात्मिक दुःख था । वे चाहते थे दुःख का मूलोच्छेद करना । उनके मार्गदर्शन से लाखों व्यक्ति दुःख से मुक्त हुए । आध्यात्मिक दुःख के उन्मूलन से शारीरिक और मानसिक दुःखों का भी उन्मूलन हुआ। वे मुक्त बने । इसलिए भगवान् जहां जाते, वहीं लोगों का तांता बंध जाता। राजगृह की जनता भी दुःख-मुक्ति के लिए भगवान् के चरणों में उपस्थित हुई । श्रेणिकस्यात्मजो मेघो, भव्यात्मात्परजोमलः । श्रुत्वा भगवतो भाषां, विरक्तो दीक्षितः क्रमात् ॥५॥ कठोरो भूतलस्पर्श, स्थानं निर्ग्रन्थ-संकुलम् । मध्येमार्ग शयानस्य, विक्षेप निन्यतुर्मनः ॥ ६ ॥ त्रियामा शतयामाऽभूत्, नानासंकल्पशालिनः । निस्पृहत्वं मुनीनां तं, प्रतिपलमपीडयत् ॥ ७ ॥ ५-६-७. महाराज श्रेणिक का पुत्र 'मेघ' भगवान के पास आया । 'उसके कर्म और आस्रव ( कर्म - बन्धन के हेतु ) स्वल्प थे । वह भव्य था। उसने भगवान् की वाणी सुनी, विरक्त हुआ और अपने मातापिता की स्वीकृति पाकर दीक्षा ली । पहली रात की घटना है कि तीन बातों ने उसके मन को चंचल बना दिया। पहली बात - भूमि का स्पर्श कठोर था, दूसरी बात -- उस स्थान में बहुत बड़ी संख्या में निर्ग्रन्थ थे और तीसरी बात वह मार्ग के बीच में सो रहा था । आते-जाते हुए निर्ग्रन्थों के स्पर्श से उसकी नींद में बाधा पड़ रही थी । 1 उसके मन में भांति-भांति के संकल्प उत्पन्न होने लगे । उसके लिए वह त्रियामा (तीन प्रहर जितनी रात ) शतयामा ( सौ प्रहर जितनी रात ) हो गई । विशेषतः साधुओं का निस्पृहभाव उसे पलपल अखरने लगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy