________________
८ : सम्बोधि
मनुष्यकृत और पशुकृत कष्टों में वे सदा पर्वत की भांति अटल रहे। उन्होंने अहिंसा पर कहीं भी आंच नहीं आने दी। इसलिए वे वीर और महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए। सम्बोधि के व्याख्याता भगवान् महावीर ही हैं।
चरन् ग्राममनुग्रामम्-एक गांव से दूसरे गांव की ओर विहार करते हुए—यह साधु जीवन की चर्या का प्रतीक है । मुनि पादचारी और अनियतवासी होते हैं। वे वर्षाकाल में चार मास तक एक स्थान में रहते हैं और शेष आठ महीनों में सदा विहार करते रहते हैं।
राजगह- यह मगध देश की राजधानी थी। इसकी गणना दस प्रमुख राजधानियों में की जाती थी। वर्तमान बिहार में स्थित राजगिर नाम से प्रसिद्ध स्थान प्राचीन काल का राजगह है।
यह भगवान् महावीर का प्रमुख विहार-स्थल था। यहां भगवान् ने चौदह चतुर्मास बिताए थे। एक बार भगवान् महावीर अपने श्वेत संघ के साथ ग्रामानुग्राम विहार करते हए यहां आए ।
जन-आगमन
नानासंतापसंतप्ताः, तापोन्मूलनतत्पराः। तमाजग्मुर्जना भूयः, सुचिर शान्तिमिच्छवः॥४॥
४. जो विभिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक सन्तापों से संतप्त थे किंतु उनका उन्मूलन करना चाहते थे और जो चिरशांति के इच्छुक थे, वे लोग बार-बार भगवान् के पास आए।
दुःख के तीन रूप हैं : शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख और आध्यात्मिक दुःख । ___ शारीरिक और मानसिक दुःखों से कोई भी व्यक्ति अपरिचित नहीं है । जीवन के साथ ये गहरे संयुक्त हैं । मन शरीर का सूक्ष्म तत्त्व है। उसकी रुग्णता शरीर पर उतरती है। अधिकांश बीमारियां मानसिक होती हैं, ऐसा आधुनिक मनोविश्लेषक स्वीकार करते हैं। मन की स्वस्थता अत्यन्त अपेक्षित है। मन में जैसे ही बीमारी का भाव उठता है, शरीर उसे तत्काल स्वीकार कर लेता है। किन्तु साधक के लिए शरीर और मन ही सब कुछ नहीं है। वह और भीतर गहराई में उतरकर उसके कारणों की खोज करता है तब उसे दिखाई देता है कि दुःखों का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org