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________________ स्थिरीकरण ऐं ॐ स्वर्भूर्भुवस्त्रय्या-स्त्राता तीर्थकरो महान् । वर्धमानो वर्धमानो, ज्ञान-दर्शन-सम्पदा ॥१॥ अहिंसामाचरन् धर्म, सहमानः परीषहान् । वीर इत्याख्यया ख्यातः, परान् सत्त्वानपीडयन् ॥२॥ अहिंसा-तीर्थमास्थाप्य, तारयन् जनमण्डलम् । चरन् ग्राममनुग्राम, राजगृहमुपेयिवान् ॥३॥ १-२-३. त्रिलोकी (स्वर्ग, भूमि और रसातल) के त्राता महान् तीर्थंकर वधं मान अहिंसा-तीर्थ की स्थापना करके, जन-जन को तारते हुए, एक गांव से दूसरे गांव में विहार करते हुए राजगृह में आए। वे ज्ञान और दर्शन की सम्पदा से वर्धमान हो रहे थे । उनका आचार था अहिंसा धर्म । वे किसी भी प्राणी को पीड़ित नहीं करते थे और आगन्तुक सभी कष्टों को सहन करते थे। वे वीर (महावीर) नाम से सुप्रसिद्ध हुए। ऐं ओं-ये बीजाक्षर हैं, विद्या और आत्म-ऐश्वर्य के प्रतीक हैं। वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा भी आज अक्षरों की शक्ति सिद्ध है। अक्षरों के पुनः-पुनः उच्चारण से उठने वाली तरंगों से मानस अप्रत्याशित रूप से प्रभावित होता है। तीर्थकर-साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका-इस चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करने वाले धर्म-संस्थापक, धर्म-प्रचारक और आगामों के उपदेष्टा तीर्थंकर कहलाते हैं। ___ वर्धमान-यह महावीर का जन्मकालीन नाम है । भगवान् जब गर्भ में आए, तब सब प्रकार से ऋद्धि की वृद्धि होती गई। अतएव वे वर्धमान कहलाए। वीर—यह भगवान महावीर की अनन्त आत्म-शक्ति का द्योतक है। देवकृत, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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