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________________ अध्याय १४ : ३१३ गई हैं, कोई आकर्षण नहीं रहा, किन्तु जिसके पास नहीं हैं वह सम्मोहित हो रहा है, लेने को ललचा रहा है । यदि उसे नहीं मिलेगी तो सम्मोहन-आकर्षण टूटेगा नहीं। ___'जो चीज हमारी है हम मालिक हैं तो उसकी मालकियत तभी है जब किसी को दे देते हैं, अन्यथा उसके गुलाम होते हैं।' कहते हैं, वर्ष भर में एक दिन आता है जिस दिन सभी घरों में अनावश्यक और आवश्यक बस्तुओं की छंटनी करदी जाती है और फिर अनावश्क लाते ही नहीं। मेघः प्राह अनगारिणां कथं धर्मों, व्यापूतानाञ्च कर्मसु । गृहिणां यदि धर्मः स्यादनगारो हि को भवेत् ॥११॥ ११. मेघ बोला-गृहस्थी में लगे हुए गृहस्थों में धर्म कैसे हो सकता है ? यदि गृहस्थ भी धर्म के अधिकारी हों तो फिर साधु कौन बनेगा? भगवान् प्राह सत्यं देवानुप्रियतद्, मुमुक्षा यस्य नोत्कटा। स वृत्तिमनगाराणां, न नाम प्रतिपद्यते ॥१२॥ १२. भगवान् ने कहा-देवानुप्रिय ! यह सच है कि जिसमें मुक्त होने की प्रबल इच्छा नहीं है वह मुनि-धर्म को स्वीकार नहीं करता। मुमुक्षा यावती यस्य, समतां तावतीं श्रितः। आचरति गृही धर्म, व्यापृतोऽपि च कर्मसु ॥१३॥ १३. जिस गृहस्थ में मुक्त होने की जितनी भावना होती है वह उतनी ही मात्रा में समता का आचरण करता है और जितनी मात्रा में समता का आचरण करता है उतनी ही मात्रा में धर्म का आचरण करता है। इस प्रकार वह गृहस्थी के कामों में लगा रहने पर भी धर्म की आराधना करने का अधिकारी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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